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________________ ४२० - समवायांग सूत्र भावार्थ - इन चौबीस तीर्थङ्करों के चौबीस प्रथम शिष्य हुए थे, उनके नाम इस प्रकार १. प्रथम ऋषभसेन, २. द्वितीय सिंहसेन, ३. चारु रूप, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दिन्न - दत्त, ९. वराह, १०. आनन्द, ११. गोस्तुभ, १२. सुधर्मा, १३. मंदर, १४. यशस्वान्, १५. अरिष्ट, १६. चक्रायुध, १७. स्वयंभू, १८. कुम्भ, १९. इन्द्र, २०. कुम्भ, २१. शुभ, २२: वरदत्त, २३. दिन- दत्त और २४ इन्द्रभूति । तीर्थ को प्रवर्तने वाले तीर्थङ्करों के ये प्रथम शिष्य उच्च और विशुद्ध कुल में उत्पन्न हुए थे और ये सब गुणों से युक्थे ।। ४०-४२ ॥ विवेचन- गणधरों का विशेष वर्णन विशेषावश्यक भाष्य से जानना चाहिए। हिन्दी में 'गणधरों का लेखा' भी प्रकाशित हुआ है। तीर्थङ्करों के जी प्रथम शिष्य होते हैं वे ही प्रथम गणधर होते हैं । भगननननननननः चौबीस तीर्थङ्करों की प्रथम शिष्याओं के नाम एएसिं चउव्वीसाए तित्थयराणं चउव्वीसं पढम सिस्सिणी होत्था, तंजहा बंभीय फग्गु सामा, अजिया कासविरई सोमा । सुमणा वारुणी सुलसा, धारणी धरणी य धरणीधरा ॥ ४३ ॥ पउमा सिवा सुई, तह अंजुया भावियप्पा य रक्खी य । बंधुवई पुप्फवई अज्जा अमिला य आहिया ।। ४४ ॥ जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदणऽज्जा य आहिया । उदियोदिय कुलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया ॥ ४५ ॥ तित्थप्पवत्तयाणं पढमा सिस्सणी जिणवराणं ॥ Jain Education International भावार्थ - इन चौबीस तीर्थङ्करों के चौबीस प्रथम शिष्याएं हुई थीं उनके नाम इस प्रकार हैं - १. ब्राह्मी, २. फाल्गुनी, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारणी, १२. धरणी, १३. धरणीधरा, १४. पदमा, १५. शिवा, १६. श्रुति, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धुमती, २० पुष्पवती, २१. अमिला, २२. यक्षिणी, २३. पुष्पचूला, २४ चन्दनबाला । तीर्थ को प्रवर्तने वाले तीर्थ की ये प्रथम शिष्याएं उच्च और विशुद्ध कुल में उत्पन्न हुई थीं और ये सब गुणों से युक्त थीं ।। ४३-४५ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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