________________
३९२
समवायांग सूत्र HAMARHMMMMARATHIHARMATMAHARAMITRAKHMIRMATH KHAARATHIHARIHITHAIMARATHI
विवेचन - अवधिज्ञान के मुख्य दो भेद हैं - भवप्रत्यय और क्षायोपशमिक।
भवप्रत्यय अवधि नैरयिक और देवों को होता है। क्षायोपशमिक के छह भेद हैं - आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित। ये छह भेद मनुष्य और तिर्यञ्चों में पाए जाते हैं।
वेदना का वर्णन सीया य दव्व सारीरसाया, तह वेयणा भवे दुक्खा ।
अब्भुवगमुव्वकमिया, णियाए चेव अणियाए ॥१॥ णेरड्या णं भंते! किं सीयं वेयणं वेयंति उसिणं वेयणं वेयंति सीओसिणं वेयणं वेयंति? गोयमा! णेरइया सीयं वेयणं वेयंति उसिणं वेयणं वेयंति सीओसिणं वेयणं वेयंति एवं चेव वेयणापदं भाणियव्वं । __कठिन शब्दार्थ - वेयणा - वेदना, अब्भुवगमुव्वक्कमिया - आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी।
भावार्थ - अपेक्षा विशेष से वेदना के कई भेद हैं जैसे कि - वेदना के तीन भेद - शीत, उष्ण, शीतोष्ण । वेदना के चार भेद - द्रव्य वेदना, क्षेत्र वेदना, काल वेदना, भाव वेदना। वेदना के तीन भेद- शारीरिक, मानसिक, शारीरिक मानसिक । वेदना के तीन भेद - साता, असाता, साताअसाता । वेदना के तीन भेद - दुःखा, सुखा, सुखदुःखा । वेदना के दो भेद - आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी । वेदना के दो भेद - निदा और अनिदा ।।१॥
हे भगवन्! नैरयिक जीव क्या शीत वेदना वेदते हैं? अथवा उष्ण वेदना वेदते हैं अथवा शीतोष्ण वेदना वेदते हैं? हे गौतम! नैरयिक जीव शीत वेदना भी वेदते हैं, उष्ण वेदना भी वेदते हैं और शीतोष्ण वेदना भी वेदते हैं। इस प्रकार श्री पन्नवणा 'सूत्र का पैंतीसवां वेदना पद सारा कह देना चाहिए।
विवेचन. - दुःख और सुखादि को भोगना वेदना कहलाती है। एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव केवल शारीरिक वेदना को ही भोगते हैं। चारों गति के सभी संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव शारीरिक, मानसिक और शारीरिक मानसिक इन तीनों प्रकार की वेदनाओं को भोगते हैं। जो वेदना स्वयं स्वीकार की जाती है उसे आभ्युपगमिकी वेदना कहते हैं। जैसे केश लोचन करना, आतापना लेना, उपवास करना आदि। जो वेदना वेदनीय कर्म के स्वयं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org