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शरीर का वर्णन
अर्थ - नैरयिक, देव, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यञ्च और मनुष्य ( युगलिक) ये अपर्याप्तक अवस्था में काल नहीं करते हैं। शेष जीवों के लिये भजना अर्थात् अपर्याप्त और पर्याप्त दोनों अवस्थाओं में काल करते हैं। यहाँ तीन आलापक कहे हैं। १. समुच्चय २. अपर्याप्तक ३. पर्याप्तक ।
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ग्रैवेयक ९ हैं। उनकी स्थिति पहले ग्रैवेयक में उत्कृष्ट स्थिति २३ सागरोपम है । फिर एक एक सागरोपम बढ़ाते हुए नववें ग्रैवेयक में उत्कृष्ट स्थिति ३१ सागरोपम की है। सर्वार्थसिद्ध में स्थिति के जघन्य और उत्कृष्ट ऐसे दो भेद नहीं होते हैं। वहाँ सब देवों की एक ही प्रकार की स्थिति होती है । इसीलिये उस स्थिति को अजघन्य अनुत्कृष्ट कहा है। वहाँ ३३ सागरोपम की स्थिति है।
शरीर का वर्णन
औदारिक शरीर
· कइ णं भंते! सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता तंजहा - ओरालिए वेडव्विए आहारए तेयए कम्मए । ओरालिए सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते तंजहा एगिंदिय ओरालियसरीरे जाव गब्भवक्कंतियमणुस्स पंचिंदिय ओरालियसरीरे य। ओरालिय सरीरस्स णं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं, उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं एवं जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियपमाणं तहा णिरवसेसं एवं जाव मणुस्सेत्ति उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं ।
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कठिन शब्दार्थ - गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय ओरालिय सरीरे - गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय का औदारिक शरीर, अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं - अंगुल का असंख्यातवां भाग, ओगाहणसंठाणे - अवगाहना संस्थान, ओरालियपमाणं- औदारिक शरीर का प्रमाण ।
भावार्थ - हे भगवन्! शरीर कितने कहे गये हैं ? हे गौतम! शरीर पांच कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण ।
हे भगवन्! औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतम! पांच प्रकार का कहा गया है । जैसे कि एकेन्द्रिय का औदारिक शरीर, बेइन्द्रिय का, तेइन्द्रिय का, चउरिन्द्रिय का तिर्यञ्च पञ्चेन्दिय का और गर्भज मनुष्य पञ्चेन्द्रिय का औदारिक शरीर । हे भगवन् !
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