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नैरयिक आदि की स्थिति का वर्णन
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आगमानुकूल नहीं है। यहाँ मूल पाठ में 'जाव' शब्द दिया है। उससे पण्णवणा सूत्र के चौथे पद का ही अतिदेश दिया गया है। 'णवरं' कह कर विशेषता भी नहीं बताई है। पण्णवणा सूत्र के चौथे पद में चार अनुत्तर विमानवासी देवों की जघन्य स्थिति ३१ सागरोपम की बताई गयी है। वही अतिदेश पाठ यहाँ पर भी होना चाहिए। इसके ३२वें समवाय में 'अत्थेगइयाणं' शब्द दिया है उससे भी यहाँ का पाठ अशुद्ध ठहरता है। इसी प्रकार भगवती सूत्र का २४ वाँ . शतक आदि को देखने से यही स्पष्ट होता है कि - चार अनुत्तर विमानों की जघन्य स्थिति ३१ सागरोपम की ही है। तदनुसार उपर्युक्त पाठ में 'इकतीसं' शब्द ही रखा है।
कठिन शब्दार्थ - अतोमुहुत्तूणाई - अंतर्मुहूर्त कम, अजहण्णमणुक्कोसेणं - अजघन्य अनुत्कृष्ट। ___ भावार्थ - हे भगवन्! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। हे भगवन्! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त कही गई है। पर्याप्तक नैरयिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की यावत् विजय वैजयंत जयंत अपराजित देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी में जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक सागरोपम, दूसरी नरक में जघन्य एक सागरोपम, उत्कृष्ट ३ सागरोपम, तीसरी में जघन्य तीन सागरोपम, उत्कृष्ट ७ सागरोपम, चौथी में जघन्य ७ सागरोपम, उत्कृष्ट १० सागरोपम, पांचवीं में जघन्य १० सागरोपम, उत्कृष्ट १७ सागरोपम, छठी में जघन्य १७ सागरोपम उत्कृष्ट २२ सागरोपम, सातवीं में जघन्य २२ सागरोपम, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की स्थिति कही गई है। भवनपति देवों की जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट १ सागरोपम से कुछ अधिक की, मनुष्य और तिर्यञ्च की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पृथ्वीकाय की २२ हजार वर्ष, अप्काय की ७ हजार वर्ष की, तेउकाय की ३ अहोरात्रि की, वायुकाय की ३ हजार वर्ष की, वनस्पतिकाय की १० हजार वर्ष, बेइन्द्रिय की १२ वर्ष, तेइन्द्रिय की ४९ अहोरात्रि की, चौइन्द्रिय की ६ महीने की, तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय की ३ पल्योपम की, मनुष्य की ३ पल्योपम की, वाणव्यन्तर देवों की जघन्य १० हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक पल्योपम की, ज्योतिषी देवों की जघन्य पल्योपम का आठवां भाग उत्कृष्ट १ पल्योपम १ लाख वर्ष अधिक, वैमानिक देवों में सौधर्म देवलोक की जघन्य १ पल्योपम उत्कृष्ट २ सागरोपम, ईशान देवलोक की जघन्य १ पल्योपम झाझेरी
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