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समवायांग सूत्र
तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव सयसहस्साई । तिण्णेगं पंचूणं, पंचेव अणुत्तरा णरगा ॥ २ ॥ चउसट्ठी असुराणं, चउरासीइं च होइ णागाणं । बावत्तरि सुवण्णाणं, वाउकुमाराणं छण्णउइ ॥ ३ ॥ दीव दिसा उदहीणं, विजुकुमारिंदथणियमग्गीणं । छण्हं वि जुवलयाणं, छावत्तरिमो य सयसहस्सा ॥४॥ बत्तीसट्ठावीसा, बारस अट्ठ चउरो य सयसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ ५ ॥ आणय पाणयकप्पे, चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिण्णि । सत्त विमाणसयाई, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥ ६ ॥ एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु, सत्तुत्तरं च मज्झिमए ।
सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तर विमाणा ॥ ७ ॥ दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए णं पुढवीए, पंचमीए णं पुढवीए, छट्ठीए णं पुढवीए, सत्तमीए णं पुढवीए गाहाहि भाणियव्वा। ... कठिन शब्दार्थ - असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए - एक लाख अस्सी हजार . योजन मोटा, णिरयावासा - नरकावास, जुज्जइ - युक्त होता है। ___ भावार्थ - नैरयिक के दो भेद हैं पर्याप्त और अपर्याप्त, उनके रहने का स्थान नरक है, उनके सात भेद हैं यथा - १. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमप्रभा ७. तमस्तमाप्रभा । तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के पांच भेद - जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प। मनुष्य के तीन भेद - कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज। देवता के चार भेद - भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक। भवनपति के दस भेद - असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत् कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, स्तनितकुमार। वाणव्यन्तर के आठ भेद - भूत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व। ज्योतिषी के पांच भेद - चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा। वैमानिक के दो भेद - कल्पोपपन्न, कल्पातीत। कल्पोपपन्न के १२ भेद - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण, अच्चुत। कल्पातीत के २ भेद - ग्रैवेयक और अनुत्तरौपपातिक । ग्रैवेयक के ९ भेद - भद्र, सुभद्र,
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