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समवायांग सूत्र
अरूपी अजीव का वर्णन से किं तं अरूवी अजीव रासी? अरूवी अजीव रासी दसविहा पण्णत्ता, तंजहा - धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए।
भावार्थ:- अरूपी अजीव राशि किसे कहते हैं ? अरूपी अजीव राशि दस प्रकार की कही गई है, जैसे कि १. धर्मास्तिकाय का स्कन्ध, २. धर्मास्तिकाय का देश, ३. धर्मास्तिकाय का प्रदेश ४-६ अधर्मास्तिकाय का स्कन्ध, देश, प्रदेश। ७-९. आकाशास्तिकाय का स्कन्ध, देश, प्रदेश, १०. काल।
विवेचन - धर्मास्तिकाय द्रव्य से एक है, क्षेत्र से सम्पूर्ण लोक परिमाण है, काल से आदि अन्त रहित है, भाव से वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं, स्पर्श नहीं। गुण से चलन गुण। जीव और पुद्गल को गति करने में सहायक। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का भी कह देना चाहिए। किन्तु गुण की अपेक्षा स्थिति गुण अर्थात् जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक होता है। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय का भी कह देना चाहिए। किन्तु क्षेत्र की अपेक्षा लोकालोक प्रमाण, गुण की अपेक्षा अवगाह गुण अर्थात् जीव और पुद्गलों को अवकाश (स्थान) देने का गुण । काल-द्रव्य की अपेक्षा अनन्त जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य पर प्रवर्ते। क्षेत्र की अपेक्षा अढाई द्वीप प्रमाण। गुण की अपेक्षा वर्तन गुण अर्थात् अवस्थान्तर करना। भाव की अपेक्षा अरूपी अजीव। (विशेष विवरण जीवाभिगम सूत्र. में है)।
रूपी अजीव का वर्णन रूवी अजीवरासी अणेगविहा पण्णत्ता जाव से किं तं अणुत्तरोववाइया? अणुत्तरोववाइया पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-विजय वेजयंत जयंत अपराजित सव्वट्ठसिद्धिया, से तं अणुत्तरोववाइया, से तं पंचिंदियसंसार समावण्ण जीवरासी ।
भावार्थ - रूपी अजीव राशि के अनेक भेद कहे गये हैं। यावत् अनुत्तरौपपातिक किसे कहते हैं, यहाँ तक कह देना चाहिए। यहाँ पर पण्णवणा सूत्र के पहले पद की भलामण दी गई है। अतः जीव राशि के इस प्रकार भेद कहने चाहिए - जीव राशि के दो भेद - १. संसार समापन्न और २. असंसार समापन्न। असंसार समापन्न यानी सिद्ध भगवान् के दो भेद - अनन्तर सिद्ध और परम्पर सिद्ध। अनन्तर सिद्ध के पन्द्रह भेद - १. तीर्थसिद्ध
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