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समवायांग सूत्र
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अईय काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियट्टिसु । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियटृति। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंत संसार कंतारं अणुपरियट्टिस्संति। ___ इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अईयकाले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंत संसारकंतारं वीईवइंसु । एवं पडुप्पण्णे वि एवं अणागए वि। __ दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयावि णासी, ण कयावि णत्थि, ण कयावि ण भविस्सइ। भुवं च भवइ य भविस्सइ य। धुवे, णिइए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्टिए, णिच्चे। से जहा णामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्संति, भुविं च भवंति य भविस्संति य, धुवा, णिइया, सासया, अक्खया, अव्वया, अवट्ठिया, णिच्चा। एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवई य भविस्सइ य, धुवे जाव अवट्ठिए णिच्चे। एत्थ णं दुवालसंगे, गणिपिडगे अणंता भावा, अणंता अभावा, अणंता हेऊ, अणंता अहेऊ, अणंता कारणा, अणंता अकारणा, अणंता जीवा, अणंता अजीवा, अणंता भव सिद्धिया, अणंता अभव सिद्धिया, अणंता सिद्धा, अणंता असिद्धा आघविजंति पंण्णविजंति परूविजंति दंसिजति णिदेसिजति उवदंसिजति । एवं दुवालसंगं गणिपिडगं, इति ॥
कठिन शब्दार्थ - इच्चेइयं - इस प्रकार यह, दुवालसंगं - द्वादशांग रूप वाणी, गणिपिडगं - गणिपिटक, आणा - आज्ञा, विराहित्ता - विराधना करके, अईय काले - अतीत काल में, चाउरंत संसार कंतारं - चतुर्गति रूप संसार अटवी में, अणुपरियट्टिसु - परिभ्रमण किया है, आराहित्ता - आराधना करके, वीईवइंसु - पार हो गये हैं, पडुप्पण्णे - प्रत्युत्पन्न-वर्तमान काल में, अणागए - अनागत-आगामी काल में, भुवि - भूतकाल में था, अव्वया - अव्यय, अवट्ठिया - अवस्थित।
भावार्थ - इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की आज्ञा .की विराधना करके अतीत काल में अनन्त जीवों ने चतुर्गति रूप संसार अटवी में परिभ्रमण किया है। इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की आज्ञा की विराधना करके परित्ता-संख्याता जीव वर्तमान काल में चतुर्गति रूप संसार
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