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बारह अंग सूत्र
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२७. सिद्ध - जितने मुनि सिद्ध हुए उनकी संख्या। . '
२८-२९. सिद्धिपथ - मोक्ष मार्ग और वह जितने काल तक ठहरा या ठहरेगा इसका कथन।
३०-३२. जिन तीर्थङ्करों ने जहाँ पादपोपगमन संथारा किया और जितने भक्त का अनशन कर कर्मों का अन्त किया तथा जिन उत्तम मुनिवरों ने अज्ञान रूपी अन्धरे का विनाश कर और संसार सागर को पार कर सदा के लिये आठ कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष के अनुपम सुख को प्राप्त किया, उसका कथन। इत्यादि ऐसे अन्य भी भाव मूल प्रथामानुयोग में कहे गये हैं। यह मूल प्रथमानुयोग है।
से किं तं गंडियाणुओगे? गंडियाणुओगे अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा - कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ, गणहरगंडियाओ, चक्कहरगंडियाओ, दसारगंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, भहबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडियाओ ओसप्पिणीगंडियाओ अमर र तिरिय णिरय गइगमणविविह परियट्टणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आषविज्जति पण्णविजंति परूविजंति, से तं गंडियाणुओगे।
कठिन शब्दार्थ - गंडियाणुओगे - गण्डिकानुयोग । ..
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि - हे भगवन्! गण्डिकानुयोग किसे कहते हैं? जहाँ एक ही प्रकार की वक्तव्यता कही गई हो अर्थात् एक ही विषय का भली प्रकार प्रतिपादन किया गया हो उसे गण्डिकानुयोग या कण्डिकानुयोग कहते हैं। वह अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे कि - कुलकर गण्डिका - अर्थात् जिसमें विमलवाहन आदि कुलकरों के पूर्वभव आदि सारी बातों का कथन किया गया है। इसी तरह आगे की गण्डिकाओं का अर्थ समझना चाहिए। तीर्थङ्कर गण्डिका, गणधर गण्डिका, चक्रधर यानी चक्रवर्ती गण्डिका, समुद्रविजय आदि दशार्ह गण्डिका, बलदेव गण्डिका, वासुदेव गण्डिका, हरिवंश गण्डिका, भद्रबाहु गण्डिका, तपकर्म गण्डिका, चित्रान्तर गण्डिका अर्थात् ऋषभदेव भगवान् और अजितनाथ भगवान् के बीच में जो उनके वंशज राजा मोक्ष में और अनुत्तर विमानों में गये उनका कथन करने वाली गण्डिका, उत्सर्पिणी गण्डिका, अवसर्पिणी गण्डिका, देव मनुष्य, तिर्यञ्च और नरक गति में बारम्बार परिभ्रमण करने का कथन, इस प्रकार की गण्डिकाओं का कथन किया जाता है, प्रज्ञापना की जाती है, प्ररूपणा की जाती है। यह गण्डिकानुयोग का कथन पूर्ण हुआ।
विवेचन - प्रश्न - हे भगवन्! गण्डिकानुयोग किसे कहते हैं?
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