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________________ बारह अंग सूत्र ९६ लाख पद हैं । ३. वीर्यप्रवाद पूर्व - इसमें कर्मसहित और कर्मरहित जीव तथा अजीवों के वीर्य - शक्ति का वर्णन है। इसमें ७० लाख पद हैं । ४. अस्तिनास्तिप्रवाद - संसार में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएं विद्यमान हैं और आकाश कुसुम वगैरह जो अविद्यमान हैं उन सब का वर्णन अस्तिनास्ति प्रवाद में है। इसमें ६० लाख पद हैं । ५. ज्ञानप्रवाद - इसमें मतिज्ञान आदि पांच ज्ञानों का विस्तृत वर्णन है। इसमें एक कम एक करोड़ पद हैं । ६. सत्यप्रवाद - इसमें सत्य रूप संयम तथा सत्य वचन का विस्तृत वर्णन है । इसमें छह अधिक एक करोड़ पद हैं। ७. आत्मप्रवाद - इसमें अनेक नय और मतों की अपेक्षा से आत्मा का प्रतिपादन किया गया है। इसमें २६ करोड़ पद हैं। ८. कर्मप्रवादपूर्व इसमें आठ कर्मों का निरूपण प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों द्वारा विस्तृत रूप से किया गया है। इसमें एक करोड़ अस्सी लाख पद हैं। ९. प्रत्याख्यान प्रवादपूर्व- इसमें प्रत्याख्यानों का भेद प्रभेद पूर्वक वर्णन हैं। इसमें ८४ लाख पद हैं। १०. विदयानुप्रवाद पूर्व - इसमें विविध प्रकार की विदया तथा सिद्धियों का वर्णन हैं। इसमें एक करोड़ दस लाख पद हैं । ११. अवन्ध्य प्रवादपूर्व इसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभ फल वाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन हैं। इसमें एक करोड़ छप्पन लाख पद हैं । १२. प्राणायुप्रवाद पूर्व- इसमें दस प्राण और आयु आदि का भेद प्रभेद पूर्वक विस्तृत वर्णन है। इसमें एक करोड़ छप्पन लाख पद हैं । १३. क्रियाविशाल पूर्व - इसमें कायिकी, आधिकरणिकी आदि क्रियाओं का तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन हैं । इसमें नौ करोड़ पद हैं । १४. लोक बिन्दुसार पूर्व - लोक में श्रुतज्ञान में जो शास्त्र बिन्दु की तरह सब से श्रेष्ठ है, वह लोक बिन्दुसार है। इसमें साढ़े बारह करोड़ पद हैं। विवेचन - जैन शासन में तीर्थङ्कर भगवान् को जब केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हो जाते हैं तब वे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करते हैं। जिस तीर्थङ्कर के जितने गणधर होने होते हैं उस पहली देशना में ही हो जाते हैं। उन गणधरों को सब से पहले जो महान् अर्थ कहते हैं और उन महान् अर्थों को जिस सूत्र रूप में गणधर गूंथते हैं उन्हें 'पूर्व' कहा जाता है। उन पूर्वों में रहे हुये ज्ञान को पूर्वगत कहते हैं । प्रश्न - हे भगवन्! गणधर किसको कहते हैं ? - Jain Education International ३४३ REFER - उत्तर - लोकोत्तर ज्ञान दर्शन चारित्र आदि गुणों के गण (समूह) को धारण करने वाले तथा प्रवचन को पहले पहल सूत्र रूप में गूंथने वाले महापुरुष 'गणधर ' कहलाते हैं। वे प्रत्येक तीर्थङ्कर के प्रधान शिष्य तथा अपने अपने गण के नायक होते हैं । गणधर शब्द की For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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