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समवायांग सूत्र RAMMAHARAM I NATMAHANKARMAHARMONIANRAIMARATIRANATIMRANIMRANIRMANNAR रहता है। भगवान् महावीर के शासन में पूरा दृष्टिवाद जम्बूस्वामी तक ही रहा था। पूर्त का ज्ञान तो एक हजार वर्ष तक रहा था।
प्रश्न - दृष्टिवाद किसे कहते हैं ?
उत्तर - "दिट्ठिवाए" शब्द की संस्कृत छाया टीकाकार ने "दृष्टिवाद और दृष्टिपात" ऐसे की है। जिसका संक्षिप्त अर्थ है जिसमें सब दृष्टियों (दर्शन) का वर्णन किया गया हो, उसे दृष्टिवाद या दृष्टिपात कहते हैं। सब द्रव्यों में अनन्त गुण और अनन्त पर्याय रहे हुए हैं। उनमें से किसी एक को मुख्य करके और दूसरे को गौण करके कहना 'नय' कहलाता है। जैसे कि जीव के जन्म मरण आदि पर्याय को मुख्य करके जीव को अनित्य कहना और जीव कभी जन्मता मरता नहीं है वह अजर अमर है। इस अविनाशीपन को मुख्य करके जीव को नित्य कहना इस प्रकार कहने को नय कहते हैं। जिसमें सभी नयों का एवं दृष्टियों का कथन हो उसे दृष्टिवाद (दृष्टिपात) कहते हैं। दृष्टिवाद के संक्षिप्त में पांच भेद हैं - १. परिकर्म - योग्यता पैदा करना २. सूत्र - विषय सूचना- अनुक्रमणिका ३. पूर्वगत - प्रतिपादन किये जाने वाला मुख्य विषय ४. अनुयोग - सूत्र के अनुकूल अर्थ करना ५. चूलिका - शेष सब अर्थों का संग्रह करना।
से किं तं परिकम्मे? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - सिद्धसेणिया परिकम्मे, मणुस्ससेणिया परिकम्मे, पद्धसेणिया परिकम्मे, ओगाहणसेणिया परिकम्मे, उवसंपज्जसेणिया परिकम्मे, विप्पजहसेणिया परिकम्मे, चुआचुअसेणिया परिकम्मे।
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! परिकर्म किसे कहते हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि परिकर्म सात प्रकार का कहा गया है वे इस प्रकार हैं - १. सिद्ध श्रेणिका परिकर्म, २. मनुष्य श्रेणिका परिकर्म, ३. पृष्ट श्रेणिका परिकर्म, ४. अवगाहना श्रेणिका परिकर्म, ५. उपसंपत् श्रेणिका परिकर्म, ६. विप्पजहत श्रेणिका परिकर्म, ७. च्युताच्युत श्रेणिका परिकर्म। . विवेचन - दृष्टिवाद के आगे के चार भेदों (सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका) के सूत्र और अर्थ को ग्रहण करने की योग्यता पैदा करने की कारणभूत भूमिका रूप शास्त्र को परिकर्म कहते हैं। जैसे कि गणित शास्त्र में सबसे पहले अङ्क गिनती, पहाड़े, जोड़, बाकी, गुणा और भाग सीखे बिना शेष गणित शास्त्र सीखा नहीं जा सकता। इन्हें सीखने पर ही शेष गणित शास्त्र को सीखा जा सकता है वैसे ही दृष्टिवाद में पहले परिकर्म शास्त्र को सीखे बिना दृष्टिवाद के शेष भेदों को सीखा नहीं जा सकता है। परिकर्म शास्त्र को सीखने पर ही .. आगे सीखा जा सकता है।
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