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बारह अंग सूत्र
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उत्तर - भगवती सूत्र के बीसवें शतक के आठवें उद्देशक में गौतम स्वामी ने पूछा है और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तर दिया है वह इस प्रकार है - . प्रश्न - तित्थं भंते! तित्थं तित्थगरे तित्थं?
अर्थ - हे. भगवन्! तीर्थ किसको कहते हैं? तीर्थङ्कर को तीर्थ कहते हैं या तीर्थ को तीर्थ कहते हैं?
उत्तर - गोयमा! अरहा ताव णियमं तित्थगरे, तित्थं पुण चाउवण्णाइण्णे समणसंघे, तंजहा - समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ। __- अर्थ - हे गौतम! जो तीर्थ की स्थापना करते हैं वे केवलज्ञानी केवलदर्शी तो तीर्थङ्कर कहलाते हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चार गुणों से युक्त को 'तीर्थ' कहते हैं। इसका दूसरा नाम है 'श्रमण संघ' । यह चार प्रकार का है - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका । ये स्वयं संसार समुद्र से तिरते हैं और इनका सहारा लेने वाले भव्य जीवों को भी संसार सागर से तिराते हैं। निःस्वार्थ बुद्धि से मोक्ष में सहायभूत हो इस दृष्टि से दान देना सुपात्र दान है। इनमें साधु-साध्वी उत्कृष्ट सुपात्र हैं और श्रावक श्राविका मध्यम सुपात्र है। अनुकम्पा दान के पात्र तो संसार के समस्त प्राणी हैं। सुखविपाक के दस अध्ययनों में सुपात्र दान का महत्त्व बताया गया है। इस में से छह जीव तो मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं और चार जीव सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए अब मुक्ति प्राप्त करेंगे ।
तप जप संजम दोहिलो, औषध कड़वी जाण । सख कारण पीछे घणो, निश्चय पद निरवाण ॥
से किं ते दिट्ठिवाए ? दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविजंति । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते तंजहा - परिकम्मं, सुत्ताई, पुव्वगयं, अणुओगो, चूलिया।
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! दृष्टिवाद किसे कहते हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि दृष्टिवाद के द्वारा सब भावों की प्ररूपणा की जाती है अर्थात् जिसमें सब दर्शनों का - मत मतान्तरों का कथन किया गया हो, उसे दृष्टिवाद कहते हैं। उस दृष्टिवाद के संक्षेप से पांच भेद कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. पूर्वगत, ४. अनुयोग, ५. चूलिका। - विवेचन - बारह अङ्गों में से दृष्टिवाद बारहवाँ अङ्ग है। यह सम्पूर्ण दृष्टिवाद तीर्थङ्कर के दो पाट तक ही चलता है। इसके बाद पूर्वो का ज्ञान तो रहता है किन्तु पूरा दृष्टिवाद नहीं
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