________________
३२८
समवायांग सूत्र
तलवार, मणिरत्न, वस्त्र, सूर्य आदि प्रश्न विद्याओं का, जो कि वचन के द्वारा किये गये प्रश्नों का तथा मन के द्वारा किये गये प्रश्नों का उत्तर देती है और जो उन उन विद्याओं की अधिष्ठात्री देवियों की शक्ति से विविध अर्थों को प्रकाशित करती हैं, उन प्रश्न विद्याओं का कथन किया गया है। वे विद्याएं कैसी हैं सो बतलाया जाता है - सद्भूत यानी वास्तविक तत्त्वों का विविध प्रकार से कथन करके मनुष्य समुदाय की बुद्धि को विस्मित करने वाली, अतीतकालीन तीर्थंकरों के अस्तित्व को बतलाने वाली अर्थात् 'भूतकाल में अतिशय सम्पन्न शम दमादि गुण युक्त तीर्थंकर हुए थे अन्यथा इस प्रकार के सत्य तत्त्वों का कथन कौन करता' इस तरह की सयुक्तियों से भूतकाल में हुए तीर्थंकरों का अस्तित्व सिद्ध करने वाली, सूक्ष्म अर्थ जो कि सब सर्वज्ञों को सम्मत हैं और जो कठिनता से जानने योग्य और कठिनता से पढ़ने योग्य हैं, ऐसे सूक्ष्म अर्थ को प्रत्यक्ष के समान प्रतीति कराने वाली प्रश्न विद्याओं के जिनवर प्रणीत विविध गुण युक्त महान् अर्थ प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहे गये हैं। प्रश्नव्याकरण सूत्र में परित्ता - संख्याता वाचना, संख्याता अनुयोगद्वार यावत् संख्याता संग्रहणी गाथाएं हैं। यह प्रश्नव्याकरण सूत्र अंगों की अपेक्षा दसवां अङ्ग सूत्र हैं। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है। पैंतालीस उद्देशन काल हैं, पैंतालीस समुद्देशन काल हैं। प्रत्येक पद की अपेक्षा संख्याता लाख पद यानी ९२ लाख १६ हजार पद कहे गये हैं। संख्याता अक्षर हैं, अनन्ता गमा यानी बोध करने के मार्ग कहे गये हैं यावत् चरणसत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा से प्रश्नव्याकरण सूत्र के भाव कहे गये हैं। यह प्रश्नव्याकरण सूत्र का भाव है।। १०॥ .
विवेचन - प्रश्नव्याकरण सूत्र में प्रश्नविद्या, अप्रश्नविद्या आदि विद्याओं का जो वर्णन किया है वह इस उपलब्ध प्रश्नव्याकरण में नहीं है। किन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ग्यारह गणधर हुए थे । उनकी नौ (आठवें गणधर और नववें गणधर की एक सम्मिलित वाचना तथा दसवें और ग्यारहवें गणधर की एक सम्मिलित वाचना हुई ।) वाचनाएँ हुई हैं। अभी उपलब्ध वाचना श्री सुधर्मा स्वामी की है। इसके अतिरिक्त आठ वाचनाओं में से किसी . वाचना में उपरोक्त प्रश्न विद्या आदि का पाठ होने की सम्भावना है। ___ वर्तमान उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सूत्र में तो दो श्रुतस्कन्ध हैं पहले श्रुतस्कन्ध का नाम आस्रव द्वार है। जिसके पांच अध्ययन हैं। पाँचों में क्रमशः हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का वर्णन हैं। हिंसा का महादुःखकारी फल जीव को भोगना पड़ता है। इसलिये सुखार्थी पुरुष को हिंसा का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। असत्यवादी पुरुष को नरक, तिर्यञ्च आदि में जन्म लेकर अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। अदत्तादान (चोरी) करने वाले
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org