SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारह अंग सूत्र ३२१ (पोता) थे । अर्थात् अन्धकवृष्णि के जिस दस पुत्रों का वर्णन पहले वर्ग में किया गया है। उनमें से दसवें पुत्र. विष्णुकुमार के ये अक्षोभकुमार आदि आठ पुत्र थे। इस प्रकार अक्षोभ कुमार आदि आठकुमार अन्धकवृष्णि के पौत्र थे। . शास्त्र के मूलपाठ पर विचार करने से तो यही ज्ञात होता है कि - ये अठारह सगे भाई थे। क्योंकि प्रथम वर्ग में और द्वितीय वर्ग में दोनों जगह 'वण्ही पिया' ऐसा पाठ दिया है। "वृष्णि" शब्द का प्राकृत में वण्हि रूप बनता है, परन्तु विष्णु शब्द का 'वण्हि' रूप नहीं बनता "विष्णु" शब्द का "विण्हु" शब्द बनता है। प्रश्न - मुद्गरपाणि यक्ष ने जब अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश कर दिया और वह मनुष्यों को मारने लगा। यह उपद्रव कितने समय तक रहा? और कितने मनुष्यों को मारा? . उत्तर - अर्जुनमालाकार का उपद्रव कितने समय तक रहा और उसने कितने मनुष्यों को मारा? इन दोनों बातों का उल्लेख अन्तगड सूत्र के मूल पाठ में नहीं मिलता है। किन्तु वृद्ध परम्परा और पूर्वाचार्यों की धारणा के अनुसार यह कहा जाता है कि - यक्षाविष्ट (जिसके शरीर में यक्ष ने प्रवेश किया हो) अर्जुनमाली का उपद्रव ५ महीने और तेरह दिन तक चला था जिसमें १६३ स्त्रियाँ और ९७८ पुरुष कुल ११४१ मनुष्यों की उसने हत्या की थी। इस धारणा का उल्लेख बहुअर्थी अन्तकृतदशाङ्ग सूत्र के प्राचीन टब्बाओं में होना संम्भव है। यह धारणा आगमानुकूल मालूम होती है। क्योंकि साढ़े पांच महीने में उपार्जन किये हुये भारी कर्मों को क्षमा युक्त बेलें-बेले की तपश्चर्या के द्वारा अर्जुन अनगार ने साढ़े पांच महीने में ही क्षय कर दिया। क्योंकि अर्जुन अनगार की दीक्षा पर्याय छह महीने की है। उसमें से १५ दिन तो संथारे के थे । उनको निकाल देने पर साढ़े पांच महीने ही बचते हैं। तपश्चर्या का प्रभाव ही जबरदस्त है। क्योंकि ठाणाङ्ग सूत्र के दसवें ठाणे में बतलाया गया है कि तपश्चर्या से निकाचित कर्म भी क्षय हो जाते हैं। यथा ___ "भव कोडि संचियं कम्मं तवसा णिजरिजई" प्रश्न - ११४१ मनुष्यों की हत्या हुई इसका पाप किसको लगा ? उत्तर - सात मनुष्यों को मारने (एक स्त्री और छह गोट्ठीले पुरुष) की भावना अर्जुन की थी इसलिये अर्जुन ने यक्ष को याद किया था और वह आया। और मुद्गर से उन सातों को मार दिया इन सात का पाप अर्जुन को भारी रूप में लगा और यक्ष को हलके रूप में लगा। शेष मनुष्यों को मारने की भावना अर्जुन की नहीं थी किन्तु उसने यक्ष को बुलाया था इसलिये शेष ११३४ मनुष्यों को मारने का पाप अर्जुन को हलका लगा और यक्ष को भारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy