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________________ ३२० समवायांग सूत्र १. वयः-स्थविर - जिस मुनि की वयः (उम्र) साठ वर्ष की हो, वे वयः-स्थविर कहलाते हैं। उन्हें अवस्था स्थविर अथवा जाति-जन्म स्थविर भी कहते हैं। २. श्रुत स्थविर - जो ठाणांग सूत्र और समवायांग सूत्र के ज्ञाता हों, उन्हें श्रुत-स्थविर कहते हैं। उन्हें ज्ञान स्थविर भी कहते हैं। ३. दीक्षा स्थविर - जिनकी दीक्षा पर्याय २० वर्ष की हो - उन्हें दीक्षा स्थविर कहते हैं। उन्हें प्रव्रज्या स्थविर या पर्याय स्थविर भी कहते हैं। प्रश्न - दशाह किसे कहते हैं ? । उत्तर - जिनकी संख्या दस हो और जो पूज्य हों, उन्हें दशाह कहते हैं। वे दस इस प्रकार हैं - १. समुद्रविजय २. अक्षोभ ३. स्तिमित ४. सागर ५. हिमवान् ६. अचल ७. धरण ८. पूरण ९. अभिचन्द्र और १० वसुदेव । वसुदेवजी के कुन्ती और माद्री ये दो छोटी बहिनें थी। बलदेव और वासुदेव के परिवार को भी 'दशाह' कहते हैं। प्रश्न - आदक्षिण - प्रदक्षिण किसको कहते हैं ? उत्तर - दोनों हाथ जोड़ने को 'अञ्जलिपुट' कहते हैं। अञ्जलिपुट को अपने दाहिने कान से लेकर सिर पर घुमाते हुए बायें कान तक ले जावे और बाद में उसे अपने ललाट पर स्थापन करें उसे "आदक्षिण-प्रदक्षिण" कहते हैं। प्रश्न - भिक्षु प्रतिमा का काल कितना है ? उत्तर - टीकाकार इसका काल ९ वर्ष बतलाते हैं। किन्तु प्राचीन धारणा के अनुसार भिक्षु पडिमा का काल एक ऋतुबद्ध काल है। अर्थात् ८ महीने का काल है। यह प्राचीन धारणा ठीक मालूम होती है। प्रश्न - प्रथम वर्ग में गौतमकुमार आदि दस और द्वितीय वर्ग में अक्षोभकुमार आदि आठ इस प्रकार इन अठारह कुमारों का वर्णन हैं। क्या ये अठारह ही सगे सहोदर भाई थे ? उत्तर - हाँ! ये अठारह ही सगे सहोदर भाई थे । इनके पिता का नाम अन्धकवृष्णि और माता का नाम धारिणी था। यही बात पूज्य जयमलजी म. सा. ने अपनी बड़ी साधु वन्दना में कही है - "गौतमादिक कुंवर, सगा अठारह भ्रात। अन्धकवृष्णि सुत, धारिणी ज्यांरी मात ॥" श्रावक श्री दलपतराजजी की बनाई हुई नवतत्त्व प्रश्नोत्तरी में बताया है कि गौतमकुमार आदि दस अन्धकवृष्णि के पुत्र थे और अक्षोभकुमार आदि आठ अन्धकवृष्णि के पौत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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