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बारह अंग सूत्र
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को पार करवाने में समर्थ, इन्द्रों द्वारा पूजित, भव्यजनों के चित्त को आनन्दित करने वाले, अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, दीपक के समान पदार्थों को प्रकाशित करके बुद्धि को बढ़ाने वाले, छत्तीस हजार प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, जो कि अनेक प्रकार से श्रुतार्थ को प्रकाशित करने वाले महान् गुणों से युक्त शिष्यों के लिए हितकारी हैं। व्याख्याप्रज्ञप्तिभगवती सूत्र की परित्ता वाचना हैं, संख्याता अनुयोग द्वार हैं, संख्याता प्रतिपत्तियाँ हैं। संख्याता वेढ-छन्द विशेष हैं। संख्याता श्लोक हैं और संख्याता नियुक्तियाँ हैं। अङ्गों की अपेक्षा यह पांचवां अङ्ग है। इसका एक श्रुतस्कन्ध है, एक सौ से अधिक अध्ययन हैं। दस हजार उद्देशक हैं। दस हजार समुद्देशक हैं। छत्तीस हजार प्रश्न हैं। चौरासी हजार पद कहे गये हैं। संख्याता अक्षर हैं, अनन्ता गम यानी अर्थपरिच्छेद हैं, अनन्ता पर्याय यानी अक्षर और अर्थों के पर्याय हैं, द्वीन्द्रियादि त्रस जीव परित्त हैं, अनन्त नहीं, स्थावर जीव अनन्त हैं, श्री तीर्थङ्कर भगवान् द्वारा कहे हुए ये पदार्थ द्रव्य रूप से शाश्वत हैं, पर्याय रूप से कृत हैं, नियुक्ति, हेतु, उदाहरण द्वारा भली प्रकार से कहे गये होने से निबद्ध हैं। व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र के ये भाव तीर्थङ्कर भगवान् द्वारा सामान्य और विशेष रूप से कहे गये हैं। नामादि के द्वारा कथन किये गये हैं। स्वरूप बताया गया है। उपमा आदि के द्वारा दिखलाये गये हैं। हेतु, दृष्टान्त आदि के द्वारा विशेष रूप से दिखलाये गये हैं। उपनय, निगमन के द्वारा.एवं सम्पर्ण नयों के अभिप्राय 'से बतलाये गये हैं। इस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र को पढ़ने से आत्मा ज्ञाता और विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरणसत्तरि और करणसत्तरि आदि की प्ररूपणा से व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के भाव कहे गये हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का यह संक्षिप्त विषय बतलाया गया है ॥ ५ ॥.. . ___ विवेचन - पांचवें अङ्ग का नाम मूल में "वियाहे" दिया है। टीकाकार ने जिसका अर्थ "व्याख्या" किया है। "व्याख्यायन्ते अर्थाः यस्यां सा व्याख्या" जिसमें अर्थों की व्याख्या (विवेचन) की गयी हो। जिस प्रकार-सूत्रकृताङ्ग सूत्र में मुख्य रूप से नौ पदार्थों की व्याख्या की गयी है। इसी तरह इस व्याख्या प्रज्ञप्ति सत्र में भी मख्य रूप से नौ पदार्थों का कथन किया गया है। यथा - १. स्वसमय (स्वसिद्धान्त) २. परसमय (परसिद्धान्त) ३. स्वपरसिद्धान्त ४. जीव ५. अजीव ६. जीवाजीव ७. लोक ८. अलोक ९. लोकालोक, इन पदों की विस्तृत व्याख्या पहले कर दी गयी है। इसमें सुर (देव) असुर, राजा, महाराजा (चक्रवर्ती), राजऋषि (जो पहले राजा थे बाद में संयम अंगीकार कर लिया उन्हें राजऋषि कहते हैं) तथा संशय युक्त जिज्ञासुओं के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विस्तार पूर्वक उत्तर दिया। ऐसे प्रश्नोत्तरों की संख्या ३६००० बतलाई गयी है।
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