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कठिन शब्दार्थ - . सूइज्जइ वर्णन किया जाता है, पयत्था - पदार्थों का, अचिरकाल पव्वइयाणं समणाणं अचिरकाल प्रव्रजित श्रमण- जिनको दीक्षित हुए ज्यादा समय नहीं हुआ हो ऐसे नवदीक्षित साधु, कुसमयमोह मोहमइ मोहियाणं - जिनकी बुद्धि कुदर्शनियों के मत को सुन कर भ्रान्त बन गई है, संदेह जाय सहज बुद्धि परिणाम संसइयाणं - जिनको सहज-स्वाभाविक सन्देह उत्पन्न हो गया है, पावकर मलिण मइगुण विसोहणत्थं - पापकारी मलिन बुद्धि को शुद्ध करने के लिए, वूहं व्यूह - प्रतिक्षेप-खण्डन, किच्चा - करके, ठाविज्ज स्थापना की जाती है, णाणा दिट्टंत वयण णिस्सारं अनेक हेतु और दृष्टान्तों से परमत की निस्सारता बतलाई जाती है, सुद्बुदरिसयंता तत्त्वों का भली प्रकार प्रतिपादन किया गया, विविह वित्थाराणुगम-परम सब्भावगुण विसिट्ठा - अनेक अनुयोगद्वारों से जीवादि पदार्थों का विस्तार पूर्वक वर्णन करके उनका परम सद्भाव - परम सत्यता सिद्ध की गई है, मोक्खपहोयारगा - मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति करने के लिये प्रेरित किया गया है, अण्णाण तमंधयार दुग्गेसु दीवभूया अज्ञान रूपी अंधकार से दुःसाध्य सत्यमार्ग को प्रकाशित करने में दीपक के समान ।
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन् ! सूत्रकृताङ्ग किसको कहते हैं अर्थात् सूत्रकृताङ्ग सूत्र में क्या भाव हैं? भगवान् फरमाते हैं कि सूत्रकृताङ्ग सूत्र में स्वसमय- .. स्वसिद्धान्त, परसमय पर सिद्धान्त अन्यतीर्थियों का सिद्धान्त, स्वपरसिद्धान्त अपना मत और अन्यतीर्थियों का मत, जीव का स्वरूप, अजीव का स्वरूप, जीव और अजीव दोनों का स्वरूप, लोक का स्वरूप, अलोक का स्वरूप, लोकालोक का स्वरूप इत्यादि बातों का वर्णन किया गया है। सूत्रकृताङ्ग सूत्र में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष इन पदार्थों का, तत्त्वों का वर्णन किया गया है। ऐसे नवदीक्षित साधु जिनकी बुद्धि कुदर्शनियों के मत को सुन कर भ्रान्त बन गई है तथा जिनको सहज - स्वाभाविक सन्देह उत्पन्न हो गया है, उन नवदीक्षित साधुओं की पापकारी मलिन बुद्धि को शुद्ध करने के लिए क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ और विनयवादी के ३२, ये सब मिला कर ३६३ पाखण्ड मत का खण्डन करके स्वसिद्धान्त की स्थापना की गई है। अनेक हेतु और दृष्टान्तों द्वारा परमत की निःसारता बतलाई गई है । प्रतिपक्षियों द्वारा खण्डित न हो सकने वाले तत्त्वों का भली प्रकार प्रतिपादन किया गया है। सत्पदप्ररूपणा आदि अनेक अनुयोग द्वारों से जीवादि पदार्थों का विस्तार पूर्वक वर्णन करके उनका परमसद्भाव - परम सत्यता सिद्ध की गई है। मोक्ष मार्ग का वर्णन कर जीवों को उसमें प्रवृत्ति करने के लिए प्रेरित
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बारह अंग सूत्र
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