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समवायांग सूत्र
दस यमक पर्वत हैं, वे सभी १०००-१००० योजन के ऊंचे कहे गये हैं। १०००-१००० गाऊ (कोस) धरती में ऊंडे कहे गये हैं और मूल में १०००-१००० योजन लम्बे चौड़े कहे गये हैं। इसी तरह निषध पर्वत से उत्तर में पांच देवकुरु क्षेत्र की सीतोदा नदी के दोनों तरफ दस चित्र कूट और दस विचित्र कूट भी १०००-१००० योजन ऊंचे १०००-१००० गाऊ ऊंडे
और १०००-१००० योजन मूल में लम्बे चौड़े कहे गये हैं। सब वृत्त (गोल) वैताढ्य पर्वत अर्थात् जम्बूद्वीप में हरिवर्ष में १, रम्यक वर्ष में १ हैमवत में १, ऐरणयवत में १, इस प्रकार जम्बूद्वीप में ४ वृत्त वैताढय पर्वत हैं, धातकीखण्ड में ८ और अर्द्धपुष्कर वर द्वीप में ८ हैं, सब मिला कर २० वृत्त वैताढ्य पर्वत हैं, वे सभी १०००-१००० योजन ऊंचे १०००-१०००. गाऊ धरती में ऊंडे १०००-१००० योजन मूल में लम्बे चौड़े और जब जगह समान पाला के संस्थान वाले कहे गये हैं। वक्षस्कार कूट को छोड़ कर बाकी सभी हरिकूट और हरिस्सह कूट १०००-१००० योजन ऊंचे और १०००-१००० योजन मूल में चौड़े कहे गये हैं। इसी तरह नन्दन कूट को छोड़ कर शेष बल कूट भी १०००-१००० योजन के ऊंचे और १०००- . १००० योजन मूल में चौड़े कहे गये हैं। बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमिनाथ स्वामी .. १००० वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। तेईसवें तीर्थङ्कर पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के १००० केवलज्ञानी साधु थे। पार्श्वनाथ भगवान् के १००० शिष्य मोक्ष गये यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। पद्म द्रह और पुण्डरीक द्रह १०००-१००० योजन लम्बे कहे गये हैं।। १००० ॥ .
विवेचन - नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में सीता महानदी के दोनों किनारों पर उत्तरकुरु क्षेत्र में यमक नाम के दो पर्वत हैं। इसी प्रकार निषध पर्वत के उत्तर में सीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर देवकुरु क्षेत्र में चित्र और विचित्र नाम के दो पर्वत हैं। अढाई द्वीप में पांच सीता महानदी और पांच सीतोदा महानदी इस प्रकार दस महानदियाँ हैं । उनके दस-दस यमक कूटों का निर्देश इस सूत्र में किया गया है। वे सभी १००० योजन के ऊँचे हैं तथा एक एक हजार कोस अर्थात २५० योजन भूमि में ऊंडे (गहरे) हैं और गोलाकार होने से सर्वत्र एक एक हजार योजन का आयामविष्कंभ (लम्बाई x चौड़ाई) है।
बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमिनाथ तीन सौ वर्ष कुमारावस्था (गृहस्थ) में रहे। फिर अविवाहित ही दीक्षित हुए, ५४ दिन छद्मस्थ रहे । ५४ दिन कम ७०० वर्ष भवस्थ केवली रहे। इस प्रकार एक हजार वर्ष का सम्पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त हुए।
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