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________________ २६६ समवायांग सूत्र रात्रि १२ मुहूर्त की होती है। पौष महीने की पूर्णिमा को रात १८ मुहूर्त. की और दिन १२ मुहूर्त का होता है। चौरानवां समवाय णिसह णीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणउइ जोयणसहस्साई एक्कं छप्पण्णं जोयणसयं दोण्णि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ। अजियस्स णं अरहओ चउणउइ ओहिणाणिसया होत्था ॥९४ ॥ ___कठिन शब्दार्थ - णिसह णीलवंतियाओ - निषध और नीलवंत पर्वत की, चउणउइओहिणाणसया - ९४०० अवधिज्ञानी । भावार्थ - निषध और नीलवंत पर्वत की जीवाएं ९४१५६ योजन .. कला की लम्बी कही गई हैं। दूसरे तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ स्वामी के ९४०० अवधिज्ञानी साधु थे ॥ ९४ ॥ विवेचन - निषध और नील पर्वत की जीवा (धनुष की डोरी के समान) के परिमाण की संवाद गाथा इस प्रकार है"चउणउइसहस्साइं छप्पणहियं सयं कला दो य। जीवा निसहस्सेस" पंचानवां समवाय सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउड़ गणा, पंचाणउड़ गणहरा होत्था। जंबूहीवस्स णं दीवस्स चरमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुहं पंचाणउइं पंचाणउइं जोयण सहस्साइं ओगाहित्ता चत्तारि महापायाल कलसा पण्णत्ता तंजहा - वलयामुहे, केऊए, जूयए ईसरे। लवण समुहस्स उभओ पासं वि पंचाणउयं पंचाणउयं पएसाओ उव्वेहुस्सेह परिहाणीए पण्णत्ताओ। कुंथू णं अरहा पंचाणउई वाससहस्साइं परमाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ९५ ॥ कठिन शब्दार्थ - पंचाणउइ - ९५, महापायाल कलसा - महापाताल कलश, उभओ पासं वि - दोनों तरफ, उव्वेहुस्सेह परिहाणीए - उद्वेध (ऊंड़ाई), उत्सेध (ऊंचाई), परिहाणी (घटना, कम होना) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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