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समवाय ९३
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मेरु पर्वत के मध्य भाग से चारों ही दिशाओं में जम्बूद्वीप की सीमा पचास-पचास हजार योजन है। वहाँ से चारों दिशाओं में लवण समुद्र के अन्दर ४२००० योजन जाने पर गोस्थूभ आदि चारों आवास पर्वत अवस्थित हैं अत: मेरुपर्वत के मध्य से प्रत्येक आवास पर्वत का अन्तर बाणवें हजार योजन सिद्ध हो जाता है। चारों आवास पर्वतों के नाम इस प्रकार है - १. गोस्थूभ २. दकभास ३. शंख ४. दकसीम ।
तराणुवा समवाय चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउई गणा, तेणउइं गणहरा होत्था। संतिस्स णं अरहओ तेणउइ चउद्दस पुव्वीसया होत्था। तेणउइ मंडलगए णं सूरिए अइवट्टमाणे णिवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं करेइ ॥ ९३ ॥
कठिन शब्दार्थ - तेणउइ - ९३, चउद्दसपुव्वी - चौदह पूर्वधारी, अइवट्टमाणे - बाह्य मंडल से आभ्यन्तर मंडल में जाता है, णिवट्टमाणे - आभ्यंतर मंडल से बाह्य मंडल में आता है, समं - सम (बराबर) अहोरत्तं - दिन रात को, विसमं - विषम। . ... भावार्थ. - आठवें तीर्थङ्कर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के ९३ गण और ९३ गणधर थे। सोलहवें तीर्थङ्कर श्री शान्तिनाथ स्वामी के ९३०० चौदह पूर्वधारी थे। सूर्य के कुल १८४ मण्डल हैं उनमें से जब सूर्य तेरानवें मण्डल पर आता है तब बाह्य मण्डल से आभ्यन्तर मण्डल में जाता है. तब अथवा आभ्यन्तर मण्डल से बाह्य मण्डल में आता है तब सम बराबर दिन रात को विषम कर देता है। अर्थात् जब सूर्य बराणवें मण्डल पर रहता है तब रात और दिन दोनों समान होते हैं यानी रात्रि ३० घड़ी को होती है और दिन भी ३० घड़ी का होता है। जब तेरानवें मण्डल पर आता है तब दिन रात को विषम कर देता है। आश्विन पूर्णिमा को दिन और रात बराबर होते हैं फिर सूर्य दक्षिणायन में जाने लगता है तब दिन घटने लगता है और रात्रि बढ़ने लगती है। इसी प्रकार चैत्री पूर्णिमा को दिन रात समान होते हैं। फिर सूर्य उत्तरायण में जाने लगता है तब दिन बढ़ने लगता हैऔर रात्रि घटने लगती है ॥ ९३ ॥
विवेचन - सूर्य के परिभ्रमण से दिन और रात होते हैं। १८४ सूर्य के मण्डलों में परिभ्रमण करने से कभी दिन रात बराबर (सम) होते हैं और कभी विषम होते हैं। आसोज पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा को दिन और रात बराबर (सम) होते हैं। अर्थात् ३० घड़ी का दिन (१५ मुहूर्त) और तीस घडी की रात्रि होती है। आषाढ़ पूर्णिमा को दिन १८ मुहूर्त का और .
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