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________________ समवाय ७७ . २४१ पव्वइया। गहतोय तुसियाणं देवाणं सतहत्तरं देव सहस्स परिवारा पण्णत्ता। एगमेगे णं मुहुत्ते सत्तहत्तर लवे लवग्गेणं पण्णत्ते ॥ ७७ ॥ कठिन शब्दार्थ - सत्तहत्तर-पुव्वसयसहस्साई - ७७ लाख पूर्व तक, महारायाभिसेयंमहाराज्याभिषेक को, संपत्ते - प्राप्त हुए, अंगवंसाओ - अंगवंश के, सत्तहत्तर लवे लवग्गेणं - ७७ लव। भावार्थ - भरत चक्रवर्ती ७७ लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रह कर फिर महाराज्याभिषेक को प्राप्त हुए। अङ्ग वंश में से ७७ राजा मुण्डित होकर यावत् प्रव्रजित हुए थे। गर्दतोय और तुषित इन दोनों लोकान्तिक देवों के ७७ हजार देवों का परिवार कहा गया है। एक मुहूर्त ७७ लव का होता है ॥ ७७ ॥ . विवेचन - आदिनाथ ऋषभदेव भगवान् जब ६ लाख पूर्व के हुए तब उनके यहाँ भरत, ब्राह्मी, बाहुबली, सुन्दरी का जन्म हुआ था। जब ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व के हुए तब उन्होंने दीक्षा ली। उनके दीक्षा लेने पर भरत माण्डलिक राजा हुए। एक हजार वर्ष बीतने पर चक्रवर्ती बनें। इस प्रकार भरत की कुमार अवस्था ७७ लाख पूर्व होती है। अङ्गवंश के ७७ राजा दीक्षित हुए थे। परन्तु उनका नाम क्या था, यह देखने में नहीं आया। पांचवें देवलोक का नाम ब्रह्मलोक है। उसके नीचे आठ कृष्णराजियाँ हैं (काले वर्ण । वाली जो पौद्गलिक रेखाएँ होती हैं उन्हें कृष्ण राजियाँ कहते हैं) उन आठ कृष्ण राजियों के बीच में आठ लोकान्तिक देव निकाय रहते हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - १. सारस्वत २. आदित्य ३. वह्नि ४. अरुण ५. गर्दतोय ६. तुषित ७. अव्याबाध ८. मरुत्। नववें लोकान्तिक देव का नाम रिष्ट है वह देवनिकाय आठ कृष्ण राजियों के बीच में रिष्टाभ नामक विमान के प्रतर में रहते हैं। इनमें से गर्दतोय और तुषित देवनिकायों के ७७ हजार सम्मिलित अनुचर देव हैं। ७७ लव का एक मुहूर्त होता है। प्रश्न - लव किसे कहते हैं ? हट्ठस्स अनवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति पवुच्चइ ॥ १ ॥ सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहूत्ते वियाहिए ॥२॥ अर्थ - तीसरे चौथे आरे का जन्मा हुआ - हृष्ट पुष्ट नीरोग प्राणी के एक श्वासोच्छ्वास उत्तर -.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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