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समवाय ७५
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उत्तराभिमुख, पवहित्ता - बह कर, वइरामयाए जिब्भियाए - वज्रमय जिह्वा से, वइरतले कुंडे - वज्रतल कुंड में। ___भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दूसरे गणधर श्री अग्निभूतिजी ७४ वर्ष की पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। निषध पर्वत ४०० योजन का ऊँचा है और १६८४२ योजन २ कला का चौड़ा है, उसके बीच में तिगिच्छि द्रह है, उस द्रह में से सीतोदा महानदी ७४२१ योजन १ कला के प्रवाह से उत्तराभिमुख बह कर ४ योजन लम्बी और ५० योजन चौड़ी वज्रमय जिह्वा से जैसे बड़े घड़े में से पानी निकलता है उसी तरह से तथा जैसे मोतियों का हार टूट कर मोती गिरते हैं उसी तरह के संस्थान से वज्र तल कुण्ड में महान् शब्द के साथ गिरती है। इसी तरह नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरी द्रह में से दक्षिणाभिमुख बह कर सीता नदी सीता प्रपात कुण्ड में गिरती है। चौथी नरक को छोड़ कर बाकी छह नरकों में ७४ लाख नरकावास हैं, अर्थात् पहली नरक में ३० लाख, दूसरी नरक में २५ लाख, तीसरी में १५ लाख, पांचवीं में ३ लाख, छठी में ५ कम एक लाख और सातवीं में ५ नरकावास हैं, ये कुल मिला कर ७४ लाख होते हैं ॥ ७४ ॥
विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दूसरे गणधर का नाम अग्निभूति है। वे ४६ वर्ष गृहस्थ अवस्था में और २८ वर्ष श्रमण पर्याय का पालन (१२ वर्ष छद्मस्थ और १६ वर्ष भवंस्थ केवली) करके सिद्ध बुद्ध यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। - सीतोदा महानदी सीतोदा प्रपात कुण्ड में गिरती है और सीता महानदी सीता प्रपात कुण्ड में गिरती है।
पिचहत्तरवां समवाय सुविहिस्स णं पुष्पदंतस्स अरहओ पण्णत्तरं जिणसगा होत्था। सीयले णं अरहा पण्णत्तरि पुव्वसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए । संती णं अरहा पण्णत्तरिवास सहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥ ७५ ॥
कठिन शब्दार्थ - पण्णत्तरि जिणसया - ७५०० जिन केवलज्ञानी।
भावार्थ - नववें तीर्थङ्कर श्री सुविधिनाथ स्वामी, जिनका दूसरा नाम पुष्पदंत स्वामी हैं, उनके ७५०० जिन केवलज्ञानी थे। दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथ स्वामी ७५ लाख पूर्व गृहस्थवास में रह कर फिर मुण्डित होकर प्रव्रजित हुए। सोलहवें तीर्थङ्कर श्री शान्तिनाथ
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