________________
समवायांग सूत्र
तेहत्तरवां समवाय
हरिवासरम्मगवासयाओ णं जीवाओ तेवत्तरिं तेवत्तरि जोयणसहस्साइं णव य एगुत्तरे जोयणसए सत्तरस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ताओ। विजए णं बलदेवे तेवत्तरिं वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ७३ ॥
कठिन शब्दार्थ - तेवत्तरि वाससयसहस्साइं - ७३ लाख वर्ष का ।
२३८
१९२
भावार्थ - हरिवर्ष और रम्यकवर्ष प्रत्येक क्षेत्र की जीवाएं ७३९०१ १७९, लम्बी कही गई हैं। विजय नामक दूसरे बलदेव ७३ लाख वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए ॥ ७३ ॥
विवेचन - हरिवास और रम्यक्वास ये दोनों युगलिक क्षेत्र हैं। इन दोनों की जीवा का परिमाण बतलाने वाली संवाद गाथा यह है
-
एगुत्तरा नवसया तेवत्तरिमे जोयणसहस्सा ।
जीवा सत्तरस कला य अद्धकला चेव हरिवासेति ॥ आवश्यक सूत्र में विजय बलदेव की आयु ७५ लाख वर्ष की बतलाई गयी है । यह मतान्तर मालूम होता है ।
चहोत्तरवां समवाय
थेरे णं अग्गिभूई गहरे चोवत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालहत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । णिसहाओ णं वासहरपव्वयाओ तिगिच्छिओ णं दहाओ सीओदा महाणईओ चोवत्तरं जोयणसयाइं साहियाइं उत्तराहिमुही पवहित्ता वइरामयाए जिब्भियाए चउजोयण आयामाए पण्णास जोयण विक्खंभाए वइरतले कुंडे महया घडमुह-पवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठाणसंठिएणं पवाएणं महया सद्देणं पवडइ । एवं सीया वि दक्खिणाहिमुही भाणियव्वा । चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवत्तरिं णिरयावास -सयसहस्सा पण्णत्ता ॥ ७४ ॥
कठिन शब्दार्थ - तिगिच्छिओ दहाओ - तिगिच्छि द्रह्न में से, उत्तराहिमुही
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org