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समवायांग सूत्र
इसी तरह दूसरें चक्रवर्ती सगर राजा भी ७१ लाख पूर्व तक गृहस्थ वास में रह कर फिर मुण्डित होकर यावत् प्रव्रजित हुए ॥ ७१ ॥
विवेचन - दूसरे तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ स्वामी १८ लाख पूर्व कुमार अवस्था में रहे थे ५३ लाख पूर्व और एक पूर्वाङ्ग अधिक राज्य किया था। किन्तु यहाँ एक पूर्वाङ्ग अधिक कहा है। वह अल्प होने से उसकी विवक्षा नहीं की गई है। इसलिये यह कहा गया है कि - अजितनाथ स्वामी ७१ लाख पूर्व (१८+५३=७१) गृहस्थावस्था में रहे थे। दूसरा सगर नाम का चक्रवर्ती भगवान् अजितनाथ के समय में ही हुआ था वह भी इकहत्तर लाख पूर्व गृहस्थ अवस्था में रह कर चक्रवर्ती पद को छोड़ कर मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुआ था।
बहत्तरवां समवाय बावत्तरि सुवण्ण कुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। लवणस्सणं समुहस्स बावत्तरि णागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति। समणे भगवं महावीरे बावत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्व दुक्खप्पहीणे । थेरे णं अयलभाया बावत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। अभिंतरपुक्खरद्धे णं बावत्तरि चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। बावत्तरि सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा। एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंत चक्कवट्टिस्स बावत्तरि पुरवरसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। बावत्तरि कलाओ पण्णत्ताओ तंजहा - लेहं, गणियं, रूवं, णटुं, गीयं, वाइयं, सरगयं, पुक्खरगयं, समतालं, जूयं, जणवायं, पोक्खच्चं, अट्ठावयं, दगमट्टियं, अण्णविही, पाणविही, वत्थविही, सयणविही, अजं, पहेलियं, मागहियं, गाहं, सिलोग, गंधजुत्तिं, महुसित्थं, आभरणविही, तरुणीपडिकम्मं, इत्थी लक्खणं, पुरिस लक्खणं, हय लक्खणं, गय लक्खणं, गोण लक्खणं, कुक्कुड लक्खणं, मिंढय लक्खणं, चक्क लक्खणं, छत्त लक्खणं, दंड लक्खणं, असि लक्खणं, मणि लक्खणं, कागणि लक्खणं, चम्म लक्खणं, चंद लक्खणं, सूरचरियं, राहुचरियं, गहचरियं, सोभागकरं, दोभागकर, विजागयं, मंतगयं, रहस्सगयं, सभासं, चारं, पडिचारं, वूहं, पडिवूह, खंधावार माणं, णगर माणं, वत्थु माणं, खंधावार णिवेसं, वत्थु णिवेसं, णगर णिवेसं, ईसत्थं, छरुप्पवायं, आस सिक्खं, हत्थि सिक्खं,
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