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समवायांग सूत्र wwwIMONIANTARNavitaMINIMINANTAMANNATHMANTARNAATMASANTMATHAKHANNA संवत्सरी करने के लिये लगाते हैं। परन्तु यह युक्ति भी ठीक नहीं है। क्योंकि जम्बूद्वीप पाणलिस के दूसरे वक्षस्कार में पांच मेघ ही बतलाये हैं - यथा - १. पुष्कर संवर्तक मेघ, २. खीर मेघ, ३. घृत मेघ, ४. अमृत मेघ और ५. रस मेघ। ये पांच मेघ ही निरंतर सात-सात दिन बरसते हैं। बीच में उघाड़ अर्थात् अन्तर भी नहीं पड़ता है। इसीलिये पांच मेघ के ३५ दिन ही होते हैं। सावण वदी एकम से ४९ या ५० वें दिन संवत्सरी करने के लिये 'गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग - १' के पृष्ठ १८४ पर पांच मेघों की वर्षा के पांच सप्ताह और बीच में दो सप्ताह खुले रहने के लिये बतलाये हैं और इसके समर्थन में 'तित्थोगाली पइण्णा' की गाथा नं. ९७९ से ९९० तक उद्धत की हैं। परन्तु इन गाथाओं से उपरोक्त ४९ या ५० दिन का समर्थन नहीं होकर खण्डन हो जाता है। क्योंकि गाथा ९८२ में कहा है-"पंचतीसे दिवसे बद्दलिया होंति सोमा उ" गाथा ९८५ में 'पंचतीसं अहोरत्ता' लिखा है अर्थात् ३५ वें दिन बादल साफ हो जाते हैं। अतः दो सप्ताह खुला करने का कथन मूल, टीका, पइण्णा में कहीं पर नहीं है। इस प्रकार 'गजेन्द्र व्याख्यान माला' के कथन का खण्डन उसमें उद्धृत की हुई गाथाओं से ही हो जाता है। इस प्रकार स्वयं के कथन का खण्डन स्वयं से ही हो जाता है।
___ एक बात और ध्यान में रखने की है वह यह है कि - उत्सर्पिणी काल को दुषमा नामक दूसरा आरा २१ हजार वर्ष का होता है। इस आरे के प्रारम्भ में सात दिन तक भरत क्षेत्र जितने विस्तार वाला पुष्कर संवर्तक मेघ बरसेगा। सात दिन की इस वर्षा से छठे आरे के अशुभ भाव रूक्षता, उष्णता आदि नष्ट हो जायेंगे। इसके तुरन्त बाद ७ दिन तक क्षीर मेघ बरसेगा इससे पृथ्वी में शुभ वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श की उत्पत्ति हो जायेगी। क्षीर मेघ के तुरन्त बाद में ७ दिन तक घृत (घी) मेघ बरसेगा इससे पृथ्वी में स्नेह (चिकनाहट) उत्पन्न हो जायेगा। इसके तुरन्त बाद ७ दिन तक अमृत मेघ बरसेगा जिसके प्रभाव से वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता आदि वनस्पतियों में अङ्कर फुट जायेंगे। अमृत मेघ के तुरन्त बाद सात दिन तक रस मेघ बरसेगा। रसमेघ की वृष्टि से वनस्पतियों में ५ प्रकार का रस उत्पन्न हो जायेगा और उनमें पत्र, प्रवाल, पुष्प और फल की वृद्धि हो जायेगी । उक्त प्रकार से वृष्टि होने पर जब पृथ्वी सरस हो जायेगी तथा वृक्ष, लता आदि विविध वनस्पतियों से हरी भरी हो जायेगी तब वे बिलवासी लोग बिलों से बाहर निकलेंगे। वे पृथ्वी को सरस, सुन्दर और रमणीय देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। वे अब तक मांस का आहार करते थे अर्थात् गंगा और सिन्धु नदियों में से मत्स्य आदि पकड कर उनका मांस खाते थे। अब वृक्षों पर फल देख कर उनका स्वादिष्ट और मधुर रस चख कर बड़े प्रसन्न होंगे। इसलिये घृणित मांस को खाना छोड़ कर फलों से
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