SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनननननननननननननन•••••fffffff समवाय १ एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । असंखिज्जवासाउय गब्भवक्कंतिय सण्णिमणुयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पण्णत्ता । सोहम्मे कप्पे देवाणं जहण्णेणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता | सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । ईसाणे कप्पे देवाणं जहण्णेणं साइरेगं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंतं भवं मणुं माणुसोत्तरं लोगहियं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । ते णं देवा एगस्स अद्धमासस्स ( एगेणं अद्धमासेणं ) आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा णीससंति वा, तेसिणं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ, संतेगइया भवसिद्धिया जे जीवा ते एगेणं भवग्गहणेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ सूत्र ९ ॥ कठिन शब्दार्थ - एगं जोयणसयसहस्सं एक लाख योजन, आयामविक्खंभेणं लम्बा-चौड़ा, अप्पइट्ठाणे णरए अप्रतिष्ठान नामक नरकावास, पालए जाण विमाणे पालक यान विमान, अद्दा - आर्द्रा, चित्ता - चित्रा, साइ- स्वाति, अत्थेगइयाणं - कितनेक, ठिई - स्थिति, पलिओवमं - पल्योपम, उक्कोसेणं उत्कृष्ट, सागरोवमं - सागरोपम, साहियं - कुछ अधिक, असुरकुमारिंद वज्जियाणं - असुरकुमारों के इन्द्रों को छोड़ कर, • असंखिज्जवासाय गब्भवक्कंतिय सण्णिमणुयाणं असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज संज्ञी मनुष्यों में, वाससयसहस्समब्भहियं - एक लाख वर्ष अधिक, वाससहस्सस्स एक हजार वर्ष, आहारट्ठे - आहार की इच्छा, समुप्पज्जइ - उत्पन्न होती है । Jain Education International - - ७ भावार्थ - यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा कहा गया है। सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नामक नरकावास एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा कहा गया है। सौधर्मेन्द्र का पालक यान विमान एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा कहा गया है। सर्वार्थ सिद्ध महाविमान एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा कहा गया है। आर्द्रा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र और स्वाति नक्षत्र एक एक तारा वाले कहे गये हैं । इस रत्नप्रभा नरक में कितनेक नैरयिकों की यानी चौथे पाथड़े के नैरयिकों की मध्यम स्थिति एक पल्योपम कही गई है। इस रत्नप्रभा For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy