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________________ समवायांग सूत्र लोक और अलोक दोनों जगह होने से अनंत प्रदेशी होते हुए भी द्रव्य रूप से एक है। यहाँ धर्म शब्द से धर्मास्तिकाय और अधर्म शब्द से अधर्मास्तिकाय लिया गया है। शुभ कर्म को पुण्य और अशुभ कर्म को पाप तथा जीव और कर्म का क्षीर नीर की तरह एकमेक हो जाने को 'बन्ध' कहते हैं। इसी प्रकार मोक्ष, आस्रव, संवर, वेदना और निर्जरा का भी एकत्व समझना चाहिए। प्रश्न - भंते (भगवान्) किसे कहते हैं ? उत्तर - भंते की छाया संस्कृत में भगवत् शब्द है। उसका अर्थ किया है, "भगं भाग्यं विद्यते यस्य स भगवान्" भग शब्द के छह अर्थ होते हैं। यथा - ऐश्वर्यस्य, समग्रस्य, रूपस्य, यशसः श्रियः । धर्मस्याथ प्रयत्नस्य, षण्णां भग इतीङ्गना ॥ अर्थ - सम्पूर्ण ऐश्वर्य रूप, यश, संयम, लक्ष्मी, धर्म और धर्म में पुरुषार्थ, इन छह बातों का स्वामी भगवान् कहलाता है। प्रश्न - तीर्थंकर किसे कहते हैं ? उत्तर - "तीर्थं करोति इति तीर्थङ्करः" अर्थ - साधु, साध्वी, श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ रूप तीर्थ की जो स्थापना करे, उसे "तीर्थंकर" कहते हैं। ____ जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। अप्पइट्ठाणे णरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। पालए. जाणविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। अद्दा णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। चित्ता णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। साइ णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्याणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता। दोच्चाए पुढवीए णेरड्याण जहण्णेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमारिदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। असंखिज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं अत्थेगइयाणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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