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________________ समवाय ६७ Jain Education International दो वारे विजयादिसु गयस्स तिन्निऽच्चुए अहव ताई । अइरेगं नरभवियं नाणा जीवाण सव्वद्धा ॥ १ ॥ अर्थ - मतिज्ञानी जीव दो वक्त चार अनुत्तर विमानों में ३३ सागरोपम की स्थिति में जावें अथवा अच्युत नामक बारहवें देवलोक में बाईस सागरोपम की स्थिति में तीन वक्त जावे तो इस तरह देव भव की स्थिति ६६ सागरोपम की होती है। बीच में जो मनुष्य का भव करता है उसकी स्थिति अधिक हो जाती है । इस प्रकार छासठ सागर से कुछ अधिक स्थिति मतिज्ञान की बन जाती है। नाना जीवों की अपेक्षा सव्वद्धा (सर्वकाल) की स्थिति है। सड़सठवां समवाय पंच संवच्छरियस्स णं जुगस्स णक्खत्त मासेणं मिज्जम्राणस्स सत्तसट्ठि णक्खत्त मासा पण्णत्ता । हेमवय. एरण्णवयाओ णं बाहाओ सत्तसट्ठि सत्तसट्ठि जोयणसग्राइं पणपण्णाई तिणि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ । मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोयम दीवस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तसट्ठि जोयण सहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । सव्वेसिं वि णक्खत्ताणं सीमा विक्खंभेणं सत्तसद्धिं भागं भइए समंसे पण्णत्ते ।। ६७ ॥ कठिन शब्दार्थ - मिज्जमाणस्स - मापने पर ( विभाजित करने पर) बाहाओ - बाहु, गोयमदीवस्स गौतम द्वीप का, सत्तसट्ठि भागं भइए ६७ से विभाजित करने पर, समंसे - समांश । . ६७ भावार्थ - पांच संवत्सर का एक युग होता है, उस युग को नक्षत्र मास से मापने पर अर्थात् विभाजित करने पर ६७ नक्षत्र मास होते हैं। नक्षत्र मास २७ २१ दिन का होता है, इसलिए एक युग में ६७ नक्षत्र मास होते हैं । हैमवत और एरण्यवत क्षेत्र की बाहू ६७५५ योजन और ३ कला की लम्बी कही गई है। मेरु पर्वत के पूर्व चरमान्त से लवण समुद्र में रहे हुए गौतम द्वीप का पूर्व चरमान्त तक ६७ हजार योजन का अन्तर कहा गया है, क्योंकि मेरु पर्वत १० हजार का चौड़ा है। वहाँ से ४५ हजार योजन पर जगती है और वहाँ से लवण समुद्र में १२ हजार योजन का गौतम द्वीप है । इस प्रकार सब मिला कर ६७ हजार योजन का अन्तर होता है । सब नक्षत्रों की सीमा विष्कम्भ को ६७ से विभाजित करने पर समांश कहा गया है ।। ६७ ॥ For Personal & Private Use Only २१९ - www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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