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________________ समवाय५४ २०५ चौपन, छउमत्थपरियायं पाउणित्ता - छद्मस्थ रह कर, सव्वण्णू - सर्वज्ञ, सव्वभावदरिसीसर्वभावदर्शी, एगणिसिज्जाए - एक आसन से बैठ कर, वागरणाइं- व्याकरण-प्रश्नों के उत्तर। भावार्थ - भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र में प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए थे उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होवेंगे । यथा - चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव। बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमिनाथ चौपन दिन छद्मस्थ रह कर जिन-राग द्वेष के विजेता केवलज्ञानी सर्वज्ञ सर्वदर्शी हुए थे। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने एक दिन में एक आसन से बैठ कर चौपन व्याकरण यानी प्रश्नों के उत्तर फरमाये थे। चौदहवें तीर्थङ्कर श्री अनन्तनाथ स्वामी के चौपन गण और चौपन गणधर थे।॥५४॥ विवेचन - यहाँ पर उत्तम पुरुष ५४ बतलाये गये हैं। यथा - २४ तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव। 'त्रिसष्टिशलाका पुरुष चरित्र' में ६३ महापुरुषों को शलाका (श्लाघ्य-प्रशंसनीय) पुरुष बतलाया है। वहाँ ९ प्रतिवासुदेवों को भी श्लाघ्य पुरुषों में लिया गया है। किन्तु यहाँ उत्तम पुरुषों में उनकी गिनती नहीं की गई है इसका कारण ऐसा मालूम होता है कि - प्रतिवासुदेवों के पिछली उम्र में ऐसी कोई अव्यावहारिक और अप्रशंसनीय घटना बन जाती है। जिससे वासुदेव के निमित्त से उनके (प्रतिवासुदेवों के) चक्र से ही मृत्यु होती है। वे लोक में निंदा के पात्र बन जाते हैं। अन्यथा प्रतिवासुदेव भी वासुदेवों की तरह 'खेमंकरे, खेमंधरे' और 'सीमंकरे, सीमंधरे' अर्थात् प्रजा में क्षेम-कुशल बरताते हैं यानी परचक्र (दूसरे राजा के आक्रमण) के भय से प्रजा की रक्षा करते हैं और आप स्वयं भी प्रजा पर अत्याचार, जुल्म आदि नहीं करते हैं किन्तु शांति बरताते हैं। ___ सीमा (मर्यादा) बांधते हैं कि - किसी भी जीव की हिंसा न करना, झूठ कपट धोखाबाजी न करना, परस्त्री गमन बलात्कार न करना। इस मर्यादा का उल्लंघन करने वाले सजा (दण्ड) के पात्र होंगे। इस मर्यादा का प्रतिवासुदेव स्वयं भी पालन करते हैं। रावण प्रतिवासुदेव था। वह न्यायनीति सम्पन्न मर्यादा पालक सदाचारी पुरुष था। किन्तु "विनाशकाले विपरीत बुद्धिः' उक्ति के अनुसार उसने सीता का अपहरण किया और वासुदेव लक्ष्मण के निमित्त से अपने ही चक्र से मृत्यु को प्राप्त हुआ और लोक में निंदनीय बन गया। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने एक दिन में एक आसन से बैठ कर चौपन वागरण (व्याकरण-प्रश्नों के उत्तर) फरमाये। वे कौनसे हैं इसका खुलासा नहीं मिलता है। चौदहवें तीर्थङ्कर अनन्त नाथ भगवान् के ५४ गणधर और ५४ गण बतलाये हैं। किन्तु आवश्यक सूत्र में ५० गणधर और ५० गण बतलाये गये हैं सो यह मतान्तर मालूम होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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