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समवायांग सूत्र
वाले, पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु - पांच अनुत्तर विमानों के अत्यन्त । उत्तम और महा विस्तीर्ण विमानों में, सम्मुच्छिम उरपरिसप्पाणं - सम्मूछिम उरपरिसरों की। ___ भावार्थ - देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र की जीवाएं तरेपन तरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी कही गई हैं। महाहिमवान् और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवाएँ ५३९३१ योजन और एक योजन के १९ भागों में से ६ कलाएं लम्बी कही गई हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तरेपन अनगार एक वर्ष की.प्रव्रज्या पाल कर पांच अनुत्तर विमानों के अत्यन्त उत्तम
और महाविस्तीर्ण विमानों में देव रूप से उत्पन्न हुए। सम्मूछिम उरपरिसरों की उत्कृष्ट स्थिति तरेपन हजार वर्ष की कही गई हैं ॥ ५३ ॥
विवेचन - महाहिमवान् वर्षधर पर्वत की जीवा का परिमाण बतलाने के लिए संवाद गाथा इस प्रकार है -
तेवन्नसहस्साई नव य सए जोयणाण इगतीसे । ....
जीवा महाहिमवओ अद्धकला छच्च य कलाओ ॥ १ ॥ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तरेपन अनगार एक वर्ष का संयम पालन कर अनुत्तर विमानों में गये। वे अनगार कौनसे हैं ? इसका खुलासा देखने में नहीं आया है। 'अणुत्तरोववाईय' सूत्र में अनुत्तर विमान में जाने वाले व्यक्तियों का वर्णन तो अवश्य है। किन्तु वे तो ३३. महापुरुष हैं और उन्होंने तो बहुत वर्षों तक संयम का पालन किया था। इसलिये वे तो इन से भिन्न हैं।
चौपनवां समवाय भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए उस्सप्पिणीए ओसप्पिणीए चउवण्णं चउवण्णं उत्तमपुरिसा उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पजिस्संति वा तंजहा - चउव्वीसं तित्थयरा बारस चक्कट्टी णव बलदेवा णव वासुदेवा। अरहा णं अरिट्ठणेमी चउवण्णं राइंदियाई छउमत्थपरियायं पाउणित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभाव दरिसी । समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगणिसिज्जाए चउवण्णाई वागरणाई वागरित्था। अणंतस्स णं अरहओ चउवण्णं गणा चउवण्णं गणहरा होत्था ॥५४ ॥
कठिन शब्दार्थ - भरहेरवएसु वासेसु - भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र में, चउवण्णं -
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