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________________ १८४ समवायांग सूत्र यहाँ 'अस्त' शब्द का प्रयोग किया गया है। यद्यपि सूर्य निरंतर गति करता ही रहता है कभी अस्त नहीं होता । किन्तु मेरुपर्वत की आड़ में आ जाने पर सूर्य अस्त हो गया है ऐसा व्यवहार में कहा जाता है इसलिये यहाँ पर 'अस्त' शब्द से मेरु पर्वत लिया गया है। इसीलिये इसको अस्ताचल पर्वत भी कहते हैं। यहाँ मेरु पर्वत का दूसरा काण्ड (विभाग) ३८००० योजन ऊंचा कहा गया है। परन्तु दूसरी जगह तो मेरुपर्वत के तीन काण्ड बतलाये गये हैं। उनमें पहला काण्ड १००० योजन का है। वह पृथ्वी (मिट्टी) उपल (पत्थर) वज्र (कठोर पत्थर), शर्करा (पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े) - रूप है। दूसरा काण्ड ६३ हजार योजन ऊंचा है। वह (रजत) चांदी. जात रूप (विशेष शद्ध चांदी एवं स्वर्ण रूप) अंक रत्न और स्फटिक रत्न रूप है। तीसरा काण्ड ३६०००० योजन ऊंचा है और एक ही प्रकार का है अर्थात् जाम्बूनद रूप स्वर्णमय है। अतः मेरु पर्वत का दूसरा काण्ड ६३ हजार योजन ऊंचा है, यह ठीक है। यहाँ ३८००० योजन ऊंचा कहा, इसका कारण समझ में नहीं आया। जम्बूद्वीप पण्णत्ति सूत्र के चौथे वक्षस्कार में मेरु पर्वत के अधिकार में बतलाया गया है कि पहला काण्ड १००० योजन का है। दूसरा काण्ड ६३००० योजन का है तथा तीसरा काण्ड ३६००० योजन का ऊंचा कहा गया है। . उनचालीसवां समवाय णमिस्स णं अरहओ एगूण चत्तालीसं आहोहिय सया होत्था। समय खेत्ते एगूणचत्तालीसं कुल पव्वया पण्णत्ता तंजहा - तीसं वासहरा, पंच मंदरा, चत्तारि उसुकारा। दोच्च चउत्थ पंचम छ? सत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूण चत्तालीसं णिरयावास सयसहस्सा पण्णत्ता। णाणावरणिजस्स मोहणिजस्स गोत्तस्स आउयस्स एएसि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूण चत्तालीसं उत्तर पगडीओ पण्णत्ताओ॥३९॥ कठिन शब्दार्थ - एगुणचत्तालीसं सया - ३९००, आहोहिय - अवधिज्ञानी, समय खेत्ते - समय क्षेत्र, कुल पव्वया - कुल पर्वत, वासहरा - वर्षधर पर्वत, मंदरा - मेरु पर्वत, उसुकारा - इषुकार पर्वत । भावार्थ - इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमिनाथ स्वामी के ३९०० अवधिज्ञानी थे। समय क्षेत्र अर्थात् अढाई द्वीप में उनचालीस कुल पर्वत कहे गये हैं। यथा - तीस वर्षधर पर्वत, पांच मेरु पर्वत और चार इषुकार पर्वत, ये सब मिला कर उनचालीस होते हैं। दूसरी नरक में २५ लाख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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