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________________ CORDEDDEER समवाय ३८ अड़तीसवां समवाय पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठतीसं अज्जिया साहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया संपया होत्था । हेमवय हेरण्णवइयाणं जीवाणं धणुपिट्टे अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले जोयणसए दस एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचि विसेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ । अत्थस्स णं पव्वयरण्णो बिईए कंडे अट्ठतीसं जोयणसहस्साई उड्डुं उच्चत्तेणं होत्था । खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तीए बीईए वग्गे अट्ठतीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता ॥ ३८ ॥ कठिन शब्दार्थ - पुरिसांदाणीयस्स - पुरुषादानीय - जिनके वचन पुरुषों में विशेष रूप से आदानीय ( ग्रहण करने योग्य) हैं, पुरुषों में प्रधान, अज्जिया - आर्यिकाएं, धणुपिट्टे - धनुः पृष्ठ-धनुष पृष्ठ, अत्थस्स पव्वयरण्णो अस्ताचल पर्वतराज - मेरु, कंडे बिईए वग्गे - दूसरा वर्ग । काण्ड, Jain Education International - १८३ - भावार्थ- पुरुषों में प्रधान एवं पुरुषों में जिनके वचन विशेष रूप से आदानीय- (ग्रहण करने योग्य) हैं ऐसे भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के उत्कृष्ट अड़तीस हजार आर्यिकाएं थीं । हैमवय हिरण्णवय क्षेत्रों की जीवा का धनुःपृष्ठ ३८७४० योजन और एक योजन के १९ भागों में से १० भाग से कुछ न्यून ( कम ) विस्तृत कहा गया है । अस्ताचल पर्वतराज यानी मेरु पर्वत का दूसरा काण्ड अड़तीस हजार योजन का ऊँचा कहा गया है। क्षुद्र विमान प्रविभक्ति नामक कालिक सूत्र के दूसरे वर्ग में अड़तीस उद्देशन काल कहे गये हैं ॥ ३८ ॥ विवेचन- २३ वें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ के लिये आगमों में अनेक स्थलों पर पुरुषादानीय ऐसा विशेषण आता है। वैसे तो सभी तीर्थङ्करों के वचन आदानीय ( ग्रहण करने योग्य) होते हैं किन्तु भगवान् पार्श्वनाथ के लिये ही पुरुषादानीय इस विशेषण का प्रयोग होता है इससे यह ध्वनित होता है कि भगवान् पार्श्वनाथ के 'आदेय' नाम कर्म का उदय विशेष रूप से था । वृत्त (गोल) क्षेत्र की 'जीवा' (रस्सी या डोरी) बतलाई गई है। वह डोरी धनुष की होती है। इसलिये हैमवत और हैरण्यवत इन दोनों युगलिक क्षेत्रों का धनुष पृष्ठ भी होता है । यहाँ उस धनुष पृष्ठ की (परिधि - परिक्षेप) बतलाई गई है । वह इस प्रकार है । योजन से कुछ न्यून (कम) है। ३८७४० For Personal & Private Use Only १० १९ www.jalnelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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