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समवायांग सूत्र wassammanaseemsensessemessareememawwammewwwwwwwwwwwwwwwwwwwnamasamooicemememewom भेत्ता - भेदन करना, अच्छिदित्ता - छिन्न भिन्न करना, अणुट्ठियाए - सभा ऊठी न हो, अभिण्णाए - छिन्न भिन्न न हुई हो, अवुच्छिण्णाए - बिखरी न हो, अवोगडाए - सभा के लोग सम्पूर्ण चले गये न हों, अणणुताविता - आसन को वापिस ठीक किये बिना, भोमा - नगर के आकार वाले विशिष्ट स्थान, चक्खुफासं - चक्षु स्पर्श-आँख से दिखाई देना, अजहण्णमणुक्कोसेणं - अजघन्य अनुत्कृष्ट - जहाँ जघन्य तथा उत्कृष्ट इस प्रकार स्थिति के दो भेद न होते हों अर्थात् एक ही प्रकार की स्थिति होती है।
भावार्थ - सम्यग् दर्शन आदि की घात करने वाली क्रियाओं को आशातना कहते हैं। आशातनाएं तेतीस कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - १. शैक्ष यानी शिष्य तथा दीक्षा पर्याय में छोटा रत्नाकर यानी ज्ञान दर्शन चारित्र रूप रत्नों में बड़े एवं दीक्षा पर्याय में बड़े साधु के आगे आगे चले तो शिष्य को आशातना लगती है २. शिष्य रत्नाकर के बराबर चले तो शिष्य को आशातना लगती है ३. शिष्य रत्नाकर के बहुत पास पास चले तो शिष्य को आशातना लगती है ४. शिष्य रत्नाकर के आगे खड़ा रहे ५. बराबरी में खड़ा रहे ६. बहुत नजदीक चिपता हुआ खड़े रहे तो शिष्य को आशातना लगती है। ७. शिष्य रत्नाकर के आगे बैठे, ८. बराबर बैठे ९. बहुत नजदीक चिपता हुआ बैठे तो शिष्य को आशातना लगती है १०. शिष्य रत्नाकर के साथ बाहर विचार भूमि यानी जंगल गया हो और कारणवशात दोनों एक ही पात्र में जल ले गये हों, ऐसी अवस्था में यदि शिष्य रत्नाकर से पहले आचमन यानी शौच करे। रत्नाकर पीछे शोच करे तो शिष्य को आशातना लगती है ११. शिष्य रत्नाकर के साथ बाहर विचार भूमि यानी जंगल गया हो अथवा स्वाध्याय करने के स्थान पर गया हो वहाँ से वापिस लौट कर यदि शिष्य पहले ईर्यापथ सम्बन्धी आलोचना करे तो शिष्य को आशातना लगती है।.१२. कोई पुरुष ऐसा है जिसके साथ रत्नाकर को पहले बातचीत करनी चाहिए। उसके साथ यदि शिष्य पहले बातचीत करे और रत्नाकर पीछे बातचीत करे तो शिष्य को आशातना लगती है। १३. रात्रि के समय अथवा विकाल यानी सन्ध्या के समय रत्नाकर शिष्य को बुलाये कि हे आर्यो! कौन सोता है और कौन जागता है? ऐसा पूछने पर शिष्य जागते हुए भी रत्नाकर के वचनों को न सुने यानी कुछ भी उत्तर न दे तो शिष्य को आशातना लगती है। १४. शिष्य अशन, पान, खादिम, स्वादिम गृहस्थ के घर से लाकर उसकी आलोचना यदि पहले अन्य शिष्यों के पास करे और पीछे रत्नाकर के पास करे तो शिष्य को आशातना लगती है। १५. शिष्य अशन पान खादिम स्वादिम गृहस्थ के घर से लाकर उस आहार पानी 'को पहले छोटे साधुओं को दिखलावे और रत्नाकर को पीछे दिखलावे तो शिष्य को
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