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________________ समवाय ३१ १५५ . ज्ञानावरणी दर्शनावरणी हो, अन्तराय कियो अन्त ।. ज्ञान दर्शन बल ये तिहूँ हो, प्रकट्या अनन्तानन्त ॥ श्री ॥ ४ ॥ अव्याबाध सुख पामिया हो, वेदनी करम खपाय। अवगाहना अटल लही हो, आयु क्षय कर जिनराय ॥ श्री ॥ ५ ॥ नाम करम नो क्षय करी हो, अमूर्तिक कहाय। अगुरु लघुपणो अनुभव्यो हो, गोत्र करम थी मुकाय ॥ श्री ॥ ६ ॥ आठ कर्मों की संक्षेप में ३१ उत्तर प्रकृतियाँ होती हैं - ज्ञानावरणीय की पांच, दर्शनावरणीय की नौ, वेदनीय की दो, मोहनीय की दो, आयुकर्म की चार, नामकर्म की दो, गोत्रकर्म की दो और अन्तराय की पांच । इनमें मोहनीय की सिर्फ दो प्रकृतियाँ ली है किन्तु होती हैं २८ । इसी प्रकार यहाँ नामकर्म की दो प्रकृतियाँ ली हैं। किन्तु अपेक्षा से इस कर्म की ४२, ६७, ९३ और १०३ भी उत्तर प्रकृतियाँ होती हैं। इस प्रकार आठों कर्मों की प्रकृतियाँ ९३, १२२, १४८ तथा १५८ हो जाती हैं। .. मेरु पर्वत समतल घरती पर १०००० योजन का चौड़ा है किसी भी गोल वस्तु. की । परिधि (परिक्षेप-घेराव) तिगुणे से कुछ अधिक होती है। इसलिये सम धरती पर मेरु पर्वत की परिधि ३१६२३ योजन से कुछ अधिक होती है। ज्योतिषी देवों के गमनागमन के मार्ग को 'मण्डल' कहते हैं। सूर्य के १८४ मण्डल हैं। सूर्य जम्बूद्वीप में एक सौ अस्सी योजन अन्दर आता है वहाँ तक सूर्य के ६५ मण्डल हैं। सूर्य लवण समुद्र में ३३० योजन जाता है वहाँ सूर्य के ११९ मण्डल हैं। वहाँ सर्व बाह्य मण्डल में जब सूर्य पहुँचता है वहाँ उसकी लम्बाई चौड़ाई एक लाख छह सौ साठ योजन होती है। गोल क्षेत्र के गणित के न्याय से वहाँ उसकी परिधि ३१८३१५ योजन होती है। इतना क्षेत्र सूर्य दो रात दिन में पहुंचता है। उसके गणित के हिसाब से ३१८३९ : योजन की दूरी से यहाँ के मनुष्य को दृष्टिगोचर होता है। .. पांच वर्ष का एक युग होता है। उसमें चन्द्र संवत्सर के ६२ मास होते हैं। इसलिये इसे अभिवर्द्धित संवत्सर कहते हैं। उसका एक मास ३५.९२९. रात दिन का होता है। अतएव वर्ष २८३.४८. रात्रि दिन का होता है। आदित्य मास ३०३ रात्रि दिन का होता है इस हिसाब से वर्ष ३६६ रातदिन का होता है। - १२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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