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________________ समवाय १९ ९५ ज्ञात - मिट्टी का लेप लगने से तुम्बी पानी में डूबती है और लेप उतर जाने पर वह पानी के ऊपर आ जाती है। इसी प्रकार कर्मों से भारी जीव संसार समुद्र में डूबता है और कर्मों का लेप हट जाने से मोक्ष प्राप्त करता है। ७. रोहिणी ज्ञात - आराधक और विराधक के लाभ और अलाभ बताने के लिए रोहिणी आदि चार पुत्रवधुओं की कथा। ८. मल्लि ज्ञात - भगवान् मल्लिनाथ की कथा। ९. माकंदी ज्ञात - कामभोगों में आसक्त पुरुष विनाश को प्राप्त होता है, जैसे रयणा(रत्ना)देवी के मोह में फंसा हुआ जिनरक्षित मारा गया । कामभोगों से विरक्त पुरुष सुख को प्राप्त होता है, जैसे जिनपालित १०. चन्द्र ज्ञात - शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की कला के समान अप्रमादी साधु के गुणों की वृद्धि होती है और कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा की कला के समान प्रमादी साधु के गुणों की हानि होती है। ११. दावद्रव वृक्ष का दृष्टान्त १२. उदक ज्ञात - पुद्गलों के परिणाम शुभाशुभ हो जाते हैं। सुबुद्धि प्रधान ने दुर्गन्धित पानी को सुगन्धित एवं शुद्ध करके जितशत्रु राजा को पुद्गलों का परिणाम समझाया था। १३. मण्डूक ज्ञात - नन्द मणियार (मणिकार) की कथा । १४. तेतली ज्ञात - धर्मप्राप्ति के लिए अनुकूल सामग्री की आवश्यकता बताने के लिए तेतलीपुत्र प्रधान की कथा। १५. नंदिफल ज्ञात - वीतराग के उपदेश से ही धर्म प्राप्त होता है। यह बताने के लिए नन्दि फल का दृष्टान्त। १६. अपरकंका (अमरकंका) ज्ञात - विषयों का कड़वा फल बतलाने के लिए अपरकङ्का (अमरकंका) के राजा पद्मनाभ की कथा। १७. आकीर्ण ज्ञात - इन्द्रियों के विषयों में आसक्त रहने से होने वाले अनर्थों को बतलाने के लिए आकीर्ण जाति के घोड़ों का दृष्टान्त। १८. सुषुमा ज्ञात - संयमी जीवन के लिए शुद्ध और निर्दोष आहार निर्ममत्व भाव से करने के लिए सुषुमा कुमारी का दृष्टान्त । १९. पुण्डरीक ज्ञात- उत्कृष्ट भाव से पालन किया गया थोड़े समय का संयम भी आत्मा का कल्याण कर देता है यह बताने के लिए पुण्डरीक का दृष्टान्त। इस जम्बूद्वीप में सूर्य ऊपर और नीचे सब मिला कर उत्कृष्ट उन्नीस सौ योजन तपता है यानी प्रकाश करता है। सूर्य अपने विमान से ऊपर एक सौ योजन तक प्रकाश करता है और अपने विमान से नीचे अठारह सौ योजन तक प्रकाश करता है। सूर्य के विमान से आठ सौ योजन नीचे यह समतल भूमि भाग है और इससे एक हजार योजन नीचे जम्बूद्वीप की सलिलावती विजय है। यह जम्बूद्वीप की सलिलावती विजय ही एक हजार योजन ऊंडी है। इस से यह स्पष्ट होता है कि धातकी खण्ड और अर्ध पुष्कर द्वीप की सलिलावती विजय एक हजार योजन ऊंडी नहीं है। वहाँ तक सूर्य का प्रकाश पहुँचता है। शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा से उदय होकर उन्नीस नक्षत्रों के साथ भ्रमण करके पश्चिम दिशा में ही अस्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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