________________
समवाय १८
९१
धोने आदि के काम में नहीं ले। १५, पर्यङ्क - पलंग, खाट, कुर्सी आदि पर न बैठे। १६. निषद्या - गृहस्थ के घर जाकर न बैठे। १७. स्नान न करे। १८. शोभावर्जन - शरीर की विभूषा न करे। चूलिका सहित श्री आचाराङ्ग सूत्र के प्रत्येक पद के हिसाब से अठारह हजार पद कहे गये हैं। ब्राह्मी लिपि के लिखने के तरीके अठारह प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. ब्राह्मी २. यवनानी, ३. लिप्तदोशा ४. उरिया (उडिया) ५. खरौष्ठी, ६. खरश्राविता ७. पहराइया, ८. उच्चतरिका ९. अक्षरपृष्टिका १०. भोगवतिका ११. वैनयिकी १२. निह्नविकी १३. अङ्क लिपि १४. गणित लिपि १५. गन्धर्व लिपि १६. भूतादर्श लिपि १७. माहेश्वरी लिपि, १८. दामि लिपि (बोलिंदी लिपि)। अस्तिनास्तिप्रवाद नामक चौथे पूर्व की अठारह वस्तु-अध्ययन कहे गये हैं।
धूमप्रभा नामक पांचवीं नरक की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन की कही गई है। पौष और आषाढ मास में एक वक्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है अर्थात् पौष पूर्णिमा मकरसंक्रान्ति में अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और आषाढी पूर्णिमा में कर्क संक्रान्ति में अठारह मुहूर्त का दिन होता है। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति अठारह पल्योपम की कही गई है। तमःप्रभा नामक छठी नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति अठारह सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति अठारह पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति अठारह पल्योपम की कही गई है। सहस्रार नामक आठवें देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सांगरोपम की कही गई है। आणत नामक नववें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति अठारह सागरोपम की कही गई है। आणत देवलोक के अन्तर्गत काल, सुकाल, महाकाल, अञ्जन, रिष्ट, साल, समान, द्रुम, महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुण्डरीक, पुण्डरीकगुल्म, सहस्रारावत्तंसक इन बीस विमानों में जो देव देव रूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपमं कही गई है। वे देव अठारह पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को अठारह हजार वर्षों से आहार की इच्छा पैदा होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अठारह भवों से सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ १८ ॥
विवेचन - यहाँ ब्रह्मचर्य के अठारह भेद बतलाये गये हैं। यथा - औदारिक (मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी) शरीर सम्बन्धी काम भोगों का स्वयं सेवन करे नहीं, करावे नहीं, करते हुए
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org