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________________ ८८ समवायांग सूत्र ऊपर बतलाये हुए १७ प्रकार के मरणों में से बारह प्रकार के मरण बाल मरण कहे गये हैं। बाल मरण से संसार घटता नहीं अपितु संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है। इसीलिये. साधु-साध्वी श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ पण्डित मरण का मनोरथ प्रतिदिन चिन्तन करते हैं। यथा - कब सीखू श्रुत ज्ञान को, करूँ पडिमा अंगीकार। पण्डित मरण से मृत्यु हो, मुनि मनोरथ सार॥ आरम्भ परिग्रह कब तजूं, कब लूं महाव्रत धार । कब शुद्ध मन आलोयणा, करूँ संथारो सार ॥ (श्रावक मनोस्थ) क्योंकि - अज्ञान मरण अनन्त मरा, कारज सधा कछु नाय । एक मरण ऐसा मरे, भव भव मरण मिट जाय ॥ अज्ञान मरण का अर्थ है बाल मरण। भव भव के जन्म मरण को मिटाने वाला पण्डित मरण है। सातवें समवाय में भी इसका विशेष विवेचन दिया गया है। दसवें गुणस्थान का नाम सूक्ष्मसम्पराय है। इस गुणस्थान में रहा हुआ जीव बन्ध योग्य १२० कर्म प्रकृतियों में से सिर्फ १७ कर्म प्रकृतियों को बांधता है। इस गुणस्थान से आगे बढ़ने पर १६ कर्म प्रकृतियों का व्यवछेद हो जाता है। सिर्फ एक साता वेदनीय कर्म प्रकृति का बन्ध होता है। जिसको ईर्यावही बन्ध कहते हैं। इसकी बन्ध स्थिति दो समय की है। .. अठारहवा समवाय ___ अट्ठारस विहे बंभे पण्णत्ते तंजहा - ओरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, णो वि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं वि अण्णं ण समणुजाणाइ, ओरालिए कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, णो वि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं वि अण्णं ण समणुजाणाइ, ओरालिए कामभोगे णेव सयं कारणं सेवइ, णो वि अण्णं काएणं सेवावेइ, काएण सेवंतं वि अण्णं ण समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, णो वि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं वि अण्णं ण समणुजाणाइ, दिव्वे कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, णो वि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं वि अण्णं ण समणुजाणाइ, दिव्वे काम भोगे णेव सयं काएणं सेवइ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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