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________________ ७३ प्रवचन-माता - चार प्रकार की यतना 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ईर्या समिति का स्वरूप आलंबणेण कालेण, मग्गेण जयणाइ य। चउकारण-परिसुद्धं, संजए ईरियं रिए॥४॥ कठिन शब्दार्थ - आलंबणेण - आलम्बन से, कालेण - काल से, मग्गेण - मार्ग से, जयणाइ - यतना से, चउकारणपरिसुद्धं - चार कारणों से परिशुद्ध, संजए - संयत, ईरियं - ईर्यासमिति में, रिए - विचरण करे। भावार्थ - आलम्बन, काल, मार्ग और यतना इन चार कारणों से शुद्ध ईर्यासमिति से . संयत-साधु गमन करे। तत्थ आलंबणं णाणं, सणं चरणं तहा। काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवजिए॥५॥ कठिन शब्दार्थ - णाणं - ज्ञान, सणं - दर्शन, चरणं - चारित्र, तहा - तथा, कालेकाल, दिवसे - दिवस, वुत्ते - कहा गया है, मग्गे - मार्ग, उप्पहवजिए - उत्पथ वर्जित। . भावार्थ - ईर्यासमिति के लिए ज्ञान-दर्शन और चारित्र आलम्बन है। काल दिवस (दिन) कहा गया है और मार्ग उत्पथ वर्जित (सुमार्ग) कहा गया है। विवेचन - ज्ञान दर्शन और चारित्र ईर्यासमिति में आलंबन (कारण) हैं। इन्हीं का आलम्बन लेकर साधु को गमन करना चाहिये। दिवस, ईर्यासमिति का काल है अर्थात् साधु को दिन में ही गमन करना. चाहिए। रात्रि में ईर्या शुद्ध नहीं होती। इसलिए रात्रि में साधु को बाहर गमन करने की मनाई है। उत्पथं को छोड़ कर साधु को सुमार्ग से गमन करना चाहिए, क्योंकि कुमार्ग में जाने से संयम की विराधना होने की संभावना रहती है। . चार प्रकार की यतना दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा। जयणा चउव्विहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण॥६॥ · कठिन शब्दार्थ - दव्वओ - द्रव्य से, खेत्तओ - क्षेत्र से, कालओ - काल से, भावओ - भाव से, जयणा - यतना, चउब्विहा - चार प्रकार की, वुत्ता - कही गई है, कित्तयओ - कीर्तन-वर्णन करूंगा, सुण - सुनो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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