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पवयणमाया णामं चउवीसइमं अज्झयणं प्रवचन - माता नामक चौबीसवां अध्ययन
प्रस्तुत अध्ययन में पंच महाव्रतों की रक्षा व अनुपालना करने वाली पांच समिति और तीन गुप्त रूप अष्ट प्रवचन माता का वर्णन है जिसमें संयमी - जीवन विवेक और यतना के साथ मन, वचन, काया के संगोपन का भी उपदेश है।
जिस प्रकार माता अपने पुत्र की देखभाल, पालन पोषण संवर्द्धन एवं संरक्षण करती है उसी प्रकार ये आठ प्रवचन माताएं भी द्वादशांगी प्रवचन की अथवा ज्ञातपुत्र निर्ग्रथ भगवान् महावीर स्वामी के प्रवचन का संवर्द्धन, रक्षण, पालन, पोषण एवं देखभाल करती है। ये वात्सल्यमयी माताएं ही वस्तुतः कल्याणकारिणी हैं। साधु साध्वियों के संयमी जीवन का पोषण करने वाली हैं। इन्हीं में द्वादशांगी प्रवचनों का समावेश हो जाता है।
पांच समितियों से उचित, शुभ एवं शुद्ध प्रवृत्तियों में प्रवृत्ति होती है साथ ही अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति भी होती है जबकि तीन गुप्तियों में मुख्यतया मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्तियों पर रोक है, नियंत्रण है किंतु गौण रूप हित, मित, तथ्य - पथ्यमय प्रवृत्ति का विधान भी है।
इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है
अष्ट प्रवचन माताओं के नाम
अट्ठ पवयण-मायाओ, समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहिया ॥१॥ कठिन शब्दार्थ आठ, पवेयणमायाओ प्रवचन माता, समिई - समिति, गुत्ती - गुप्ति, पंचेव - पांच, तओ तीन, आहिया - कही गई है।
अट्ठ
भावार्थ - समिति और गुप्ति ये आठ प्रवचन - माता हैं। समितियाँ पाँच और गुप्तियाँ तीन
कही गई हैं।
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ईरिया - भासे - सणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ॥२॥
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