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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन COOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO0000000000000000000
भावार्थ - उस तिन्दुक उद्यान में केशीकुमार श्रमण और गौतमस्वामी का जो नित्य समागम हुआ, उससे श्रुत और चारित्र की वृद्धि करने वाले महार्थार्थ - महान् पदार्थों का निर्णय हुआ।
विवेचन - श्री केशीकुमार श्रमण और उनके शिष्य तथा श्री गौतम स्वामी और उनके शिष्य जब तक श्रावस्ती नगरी में रहे तब तक नित्य प्रति उनका समागम (मिलन) होता रहा।
उपसंहार तोसिया परिसा सव्वा, सम्मग्गं समुवट्ठिया। संथुया ते पसीयंतु, भयवं केसीगोयमे॥६॥ तिबेमि॥ .
कठिन शब्दार्थ - तोसिया - संतुष्ट, सव्वा परिसा - सारी परिषद्, सम्मग्गं - सन्मार्ग में, समुवट्ठिया - समुपस्थित - समुद्यत, संथुया - स्तुति की, पसीयंतु - प्रसन्न हो। :
भावार्थ - सर्व देव, असुर और मनुष्यों से युक्त वह सारी सभा अत्यन्त संतुष्ट हुई और सभी सन्मार्ग में प्रवृत्त हुए तथा वे सभी स्तुति करने लगे कि भगवान् केशीकुमार और गौतमस्वामी सदा प्रसन्न रहें एवं जयवंत रहें। कुमार श्रमण केशीस्वामी और गौतमस्वामी दोनों महापुरुष कर्म क्षय कर मोक्ष पधार गये हैं। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - केशीश्रमण और गौतमस्वामी की धर्मचर्चा से निम्न मुख्य लाभ हुए - १. श्रुत और शील (शास्त्र ज्ञान और चारित्र) का समुत्कर्ष हुआ। २. मोक्ष पुरुषार्थ में साधन रूप शिक्षा, व्रत आदि नियमों तथा तत्त्व आदि का निर्णय हुआ। ३. देव, असुर, दानव, मानव सहित समग्र परिषद् संतुष्ट हुई और ४. सम्यक् मार्ग (मोक्ष मार्ग) में प्रवृत्त होने के लिए उद्यत हुई
वास्तव में महापुरुषों के संवाद में किये गये तत्त्व निर्णय से अनेक भव्य पुरुषों को लाभ पहुँचता है। इसलिए परिषद् के द्वारा इन दोनों महापुरुषों की स्तुति का किया जाना सर्वथा समुचित है। इस संदर्भ में प्रथम दो प्रश्नों को छोड़कर शेष दस प्रश्नों के गुप्तोपमालंकार से वर्णन किया गया है ताकि श्रोताओं को प्रश्न विषयक स्फुट उत्तर जानने की पूरी इच्छा बनी रहे। इसके अतिरिक्त 'त्ति बेमि' की व्याख्या पूर्व की ही भांति समझ लेनी चाहिये।
॥ केशि गौतमीय नामक तेईसवाँ अध्ययन समाप्त॥
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