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________________ कठिन शब्दार्थ जा जो, नाव (नौका), णावा पारस्सगामिणी पार ले जाने वाली, णिरस्साविणी - छिद्र रहित । भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि जो नौका आस्रव (छिद्रों) वाली होती है वह कभी पार ले जाने वाली नहीं होती, अपितु वह स्वयं समुद्र में डूब जाती है और उसमें बैठे हुए मनुष्यों को भी डूबा देती है किन्तु जो नौका निर्धास्रव छिद्रों रहित है वह अवश्य ही पार ले जाने वाली होती है। - केशि - गौतमीय - गौतम का समाधान - Jain Education International - सरीरमाहु णावत्ति, जीवो वुच्चइ णाविओ । संसारी अण्णवो वत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥ ७३ ॥ - - अस्साविणी णावा य इइ का वृत्ता? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥७२॥ भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह नौका कौनसी कही गई है ? उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे । - कठिन शब्दार्थ - सरीरं शरीर को, आहु- कहा है, णाविओ नाविक, अण्णवोअर्णव- समुद्र, वृत्तो - कहा गया है, तरंति तैर जाते हैं, महेसिणो- महर्षि । भावार्थ तीर्थंकर देव ने इस शरीर को नौका कहा है और जीव नाविक - नौका को चलाने वाला कहा जाता है तथा संसार अर्णव-समुद्र कहा गया है जिसे महर्षि लोग तिर कर पार हो जाते हैं। ६३ - For Personal & Private Use Only छिद्रयुक्त, - विवेचन यह शरीर ज्ञान-दर्शन- चारित्र का अथवा जीव (आत्मा) का आधारभूत है । शरीर जब नौका है तो शरीर के अधिष्ठाता जीव को नाविक ही कहा जाएगा। क्योंकि शरीर रूपी नौका का संचालन जीव के द्वारा ही हो सकता है। संसार रूपी समुद्र भयंकर है जिसमें जन्म-जरा-मरण आदि रूप अगाध जल है। नौका जैसे संसारी जीवों को समुद्र पार ले जाती है उसी प्रकार जिनकी शरीर रूपी नौका आस्रव - छिद्र रहित होती है उन्हें यह संसार समुद्र के पार ले जाती है। www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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