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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन oooooooooooooooooooooooooooooooooooooo अयं साहस्सिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ। जंसि गोयम! आरूढो, कहं तेण ण हीरसि?॥५५॥
कठिन शब्दार्थ - अयं - यह, साहस्सिओ - साहसिक, दुट्ठस्सो - दुष्ट अश्व, परिधावइ - दौड़ रहा है, आरूढो - चढ़े हुए हो, कहं ण हीरसि - उन्मार्ग में क्यों न ले जाता? ___ भावार्थ - सातवाँ प्रश्न - हे गौतम! यह साहसिक और भयानक दुष्ट अश्व (घोड़ा) चारों ओर भागता फिरता है उस पर चढ़े हुए आप उस घोड़े द्वारा उन्मार्ग में क्यों नहीं ले जाये. जाते हो अर्थात् वह दुष्ट घोड़ा आपको उन्मार्ग में क्यों नहीं ले जाता?
पहावंतं णिगिण्हामि, सुयरस्सीसमाहियं। ण मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवजड़॥५६॥
कठिन शब्दार्थ - पहावंतं - तेजी से भागते हुए, णिगिण्हामि - वश में करता हूं, सुयरस्सी समाहियं - श्रुतज्ञान रूपी लगाम से बांध कर, उम्मग्गं - उन्मार्ग को, पडिवज्जइ - ग्रहण करता है।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि हे मुने! उन्मार्ग की ओर जाते हुए उस दुष्ट घोड़े को श्रुतज्ञान रूपी लगाम से बांध कर मैं वश में कर लेता हूँ। इससे वह मुझे उन्मार्ग में नहीं ले जाता है किन्तु सन्मार्ग में ही प्रवृत्ति कराता है।
गौतमस्वामी का समाधान आसे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥५७॥ कठिन शब्दार्थ - आसे - अश्व।
भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि अश्व - वह घोड़ा कौन-सा कहा गया है? इस प्रकार प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
मणो साहस्सिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ। तं सम्मं तु णिगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कंथगं॥५६॥
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