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________________ संयम में स्थिर कर देते हैं। इसका सुन्दर स्वरूप भी इसमें बतलाया गया है। सती राजमती के सुभाषित वचन पथभ्रष्ट साधकों के लिए युगों-युगों तक प्रेरणास्प्रद रहेंगे। तेइसवां अध्ययन केशि- गौतमीय - इस अध्ययन में केशीकुमार श्रमण का गणधर गौतम के साथ साधना सम्बन्धी संवाद प्रस्तुत किया गया है। केशीकुमार श्रमण भगवान् पार्श्वनाथ की संतानीय परम्परा के संत थे। एकदा वे अपने शिष्य समुदाय के साथ श्रावस्ती नगरी के तिन्दुक उद्यान में पधारे। उधर भगवान् महावीर की परम्परा को गणधर गौतम स्वामी अपने शिष्य समुदाय के साथ श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान में पधारे। भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर की परम्पराओं में कुछ आचार भेद था। जब दोनों परम्परा के संत परस्पर मिले तो आचार भेद देखकर अपने-अपने गुरुओं के समक्ष शंकाएं प्रस्तुत की। इसका समाधान करने के लिए गौतम स्वामी अपने शिष्यों के साथ तिन्दुक उद्यान में पधारे। केशीकुमार श्रमण द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर गौतम स्वामी ने उनका यथोचित समाधान किया। सभी प्रश्नोत्तर आध्यात्मिक दृष्टि से हृदयंगम करने योग्य है । प्रवचन माता • चौबीसवां अध्ययन इस अध्ययन में साधु के पांच समिति तीन गुप्ति के पालन के विधि-विधान का निरूपण किया गया। जिस प्रकार माता अपनी. संतान का पालन-पोषण संरक्षण, संवर्द्धन करती, उसी प्रकार संयमी साधकों के जीवन रक्षण के लिए पांच समिति तीन गुप्ति का पालन माता के सदृश्य है । इनका पालन संयमी जीवन को सुरक्षित ही नहीं रखता प्रत्युत उसका संवर्द्धन और संरक्षण भी करता है। इनका यथाविध पालन करने वाला साधक चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण से सर्वथा मुक्त होकर पंचम मोक्ष गति को प्राप्त कर लेता है। - Jain Education International - [7] - पच्चीसवां अध्ययन यज्ञीय इस अध्ययन में द्रव्य यज्ञ और भावयज्ञ का स्वरूप बतलाया गया है । वाणारसी नगरी में जयघोष और विजयघोष नाम के दो भाई रहते थे। एक समय जयघोष गंगा नदी में स्नान करने गया। वहाँ उसने एक प्रसंग को देखा जिससे उसे संवेग भाव उत्पन्न हुआ और उन्होंने जैन प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। किसी समय विचरण करते हुए आप वाणारसी नगरी में पधारे। मासखमण के पारणे के लिए घुमते हुए आप अपने भाई विजयघोष की यज्ञ शाला में पहुँचे। आपके कृश शरीर के कारण विजयघोष आपको पहिचान नहीं पाया और भिक्षा के लिए इन्कार कर दिया। तदुपरान्त मुनि से शान्त भाव से द्रव्य यज्ञ और भाव यज्ञ का स्वरूप समझाया। द्रव्य यज्ञ को महान् हिंसा का कारण समझ कर विजयघोष भी दीक्षा अंगीकार कर ली। दोनों भाई शुद्ध संयम का पालन करके मोक्ष गति को प्राप्त किया । - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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