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________________ केशि-गौतमीय - गौतमस्वामी का श्रावस्ती पदार्पण ३६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भावार्थ - लोक में दीपक के समान अर्थात् संसार के सम्पूर्ण पदार्थों को अपने ज्ञान द्वारा प्रकाशित करने वाले उन भगवान् वर्द्धमान स्वामी के विद्या, ज्ञान और चारित्र के पारगामी महायशस्वी भगवान् गौतम शिष्य थे। बारसंगविऊ बुद्धे, सीस-संघसमाउले। गामाणुगामं रीयंते, सेऽवि सावत्थिमागए॥७॥ . . कठिन शब्दार्थ - बारसंगविऊ - द्वादश अंगशास्त्रों के वेत्ता। भावार्थ - आचाराङ्ग से लेकर दृष्टिवाद तक के बारह अंगों के ज्ञाता तत्त्वज्ञानी शिष्यों के परिवार सहित ग्रामानुग्राम विचरते हुए वे गौतम स्वामी भी श्रावस्ती नगरी में पधारे। विवेचन - प्रस्तुत गाथा में गौतमस्वामी के लिए 'बारसंगविऊ' तथा 'बुद्धे' ये दो विशेषण दिये गए हैं। प्रथम विशेषण का आशय द्वादशांगी के ज्ञाता एवं रचयिता-अर्थात् गौतम स्वामी को चार ज्ञानों से युक्त होने पर भी चतुर्ज्ञानी नहीं कहकर द्वादशांगी वेत्ता कहा है, क्योंकि अवधिज्ञान से भी द्वादशांगी वेत्ता के पर्याय अनंत गुणे होते हैं, अतः इस विशेषण के द्वारा उनकी विशिष्ट ज्ञान क्षमता बताई गई है। 'बुद्धे' शब्द का आशय यह है कि हेय, ज्ञेय और उपादेय को जानने वाले और उत्पाद, व्यय, घ्रौव्य इस त्रिपदी के द्वारा पदार्थों के स्वरूप को यथावत् समझने और समझाने वाले। कोट्टगं णाम उजाणं, तम्मि णगरमंडले। फासुए सिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए॥॥ भावार्थ - उस श्रावस्ती नगरी के समीप कोष्ठक नाम का एक उद्यान था वहाँ प्रासुक (जीव-रहित) संस्तारक युक्त स्थान में ठहर गये। विवेचन - तेणेव कालेण - उस समय जब भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य केशीकुमार श्रमण श्रावस्ती नगरी में पधारे उसी समय चौवीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी जो धर्म तीर्थंकर एवं जिन के रूप में समस्त लोक में विख्यात हो चुके थे, विद्यमान थे। अर्थात् वह समय चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के धर्मशासन का था। - उनके पट्टशिष्य गौतमस्वामी भी अपने शिष्यों के साथ विभिन्न ग्राम नगरों में विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी में पधारे और कोष्ठक उद्यान में विराजे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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