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________________ ३७ केशि-गौतमीय - केशीश्रमण का श्रावस्ती पदार्पण 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ७. जिणे - जिन - समस्त कर्मों को जीतने वाले। ___ इस गाथा में 'जिणे' शब्द का प्रयोरा दो बार हुआ है। दूसरी बार 'जिन' विशेषण समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय कर सिद्धि गति को प्राप्त होने का संसूचक है। इसका आशय यह है कि भगवान् महावीर तीर्थंकर रूप में उस समय प्रत्यक्ष विचरण कर रहे थे और भगवान् पार्श्वनाथ तीर्थंकर मुक्ति प्राप्त कर चुके थे। केशी कुमार श्वमण तस्स लोगपईवस्स, आसी सीसे महायसे। केसी कुमार समणे, विजाचरण-पारगे॥२॥ कठिन शब्दार्थ - लोगपईवस्स - लोक प्रदीप के, विज्जाचरण पारगे - विद्या और चरण (चारित्र) के पारगामी, सीसे - शिष्य, महायसे - महायशस्वी, केसीकुमार समणे - केशीकुमार श्रमण। : भावार्थ - लोक में दीपक के समान अर्थात् संसार के सम्पूर्ण पदार्थों को अपने ज्ञान द्वारा प्रकाशित करने वाले उन पार्श्वनाथ भगवान् के विद्या (ज्ञान) और चारित्र के पारगामी, महायशस्वी कुमार श्रमण केशी स्वामी शिष्य थे। - विवेचन - भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य केशी स्वामी थे। उन्होंने बचपन में यानी छोटी उम्र में दीक्षा ली थी इसलिए शास्त्रकार ने उनको 'कुमार श्रमण' कहा है। ... केशीश्वमण का श्रावस्ती पदार्पण . ओहिणाणसुए बुद्धे, सीससंघसमाउले। ... गामाणुगामं रीयंते, सावत्थिं पुरिमागए॥३॥ कठिन शब्दार्थ - ओहिणाणसुए - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से युक्त, बुद्धे - प्रबुद्ध, सीससंघसमाउले - शिष्य समूह से परिवृत हो कर, गामाणुगाम - ग्रामानुग्राम, रीयंते - विहार करते हुए, सावत्थिं पुरि (णयरिं) - श्रावस्ती नगरी में, आगए - पधारे। भावार्थ - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से युक्त तत्त्वों को जानने वाले शिष्यों के परिवार सहित. ग्रामानुग्राम विचरते हुए वे कुमार श्रमण केशी स्वामी श्रावस्तीपुरी नामक नगरी में पधारे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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