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रथनेमीय - शोकाकुल और प्रतिबुद्ध राजीमती 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कहा - 'हे दमीश्वर! तुम अपने अभीष्ट मनोरथ को प्राप्त करने में शीघ्र सफल होओ अर्थात् रत्नत्रयी में उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए मोक्ष को शीघ्र प्राप्त करो।' .. णाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेणं तवेण य।
खंतीए मुत्तीए चेव, वडमाणो भवाहि य॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - णाणेणं - ज्ञान से, दंसणेणं - दर्शन से, चरित्तेणं - चारित्र से, खंतीए - क्षमा से, मुत्तीए - निर्लोभता से, वड्डमाणो भवाहि य - बढ़ते रहो।
भावार्थ - वासुदेव आदि फिर कहने लगे कि ज्ञान से और दर्शन से, चारित्र से और तप से तथा क्षमा से और निर्लोभता से वृद्धिवंत हो अर्थात् आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, क्षमा, निर्लोभता आदि गुणों की वृद्धि करें। .. एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहू जणा।
अरिट्ठणेमिं वंदित्ता, अइगया बारगापुरिं॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - रामकेसवा - राम और केशव, दसारा - दर्शाह - यदु श्रेष्ठ, बहुजणा- बहुत से जन, अइगया - लौट गये, बारगापुरिं - द्वारिका नगरी में।
भावार्थ - इस प्रकार वे बलराम और श्रीकृष्ण दशाह प्रमुख यादव और बहुत से मनुष्य अरिष्टनेमि को वन्दना करके द्वारिका नगरी में लौट आये और भगवान् भी अन्यत्र विहार कर गये।
शोकाकुल और प्रतिबुद्ध राजीमती सोऊण रायकण्णा, पव्वजं सा जिणस्स उ। णीहासा य णिराणंदा, सोगेण उ समुत्थिया॥२८॥
कठिन शब्दार्थ - णीहासा - हास्य रहित, णिराणंदा - आनंद से रहित, सोगेण - शोक से, समुत्थिया - व्याप्त हो गई।
भावार्थ - वह राजकन्या राजीमती जिनेन्द्र भगवान् अरिष्टनेमि की दीक्षा होना सुन कर हास्यरहित और आनन्द से रहित होकर शोक से व्याप्त हो गई।
राईमई विचिंतेइ, धिरत्थु मम जीवियं। जाऽहं तेणं परिच्चत्ता, सेयं पव्वईम॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - राईमई - राजीमता, विचिंतेइ - सोचा, धिरत्थु - धिक्कार है,
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