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सुसज्जित से, जहक्कमं
दिव्वेण - दिव्य, गगणं फुसे - गगन को स्पर्श किया।
भावार्थ - यथाक्रम से सज्जित की हुई हाथी, घोड़े, रथ और पैदल रूप चतुरंगिणी सेना से तथा मृदंग, ढोल आदि वादिंत्रों के शब्द से आकाश को गुञ्जित करने लगे ।
एयारिसाए इडीए. जुईए उत्तमाइ य ।
णियगाओ भवणाओ, णिज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - एयारिसाए
णियगाओ उत्तम,
उत्तमाइ वहिपुंगवो - वृष्णि पुंगव यादवों में प्रधान, श्रेष्ठ ।
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रथनेमीय - सारथी से प्रश्नोत्तर
यथाक्रम से, तुरियाण - वाद्यों के, सण्णिणाएण
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भावार्थ
यादवों में प्रधानं वे अरिष्टनेमि कुमार अपने भवन से निकले ।
सारथी से प्रश्नोत्तर
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इस प्रकार की, इड्डीए - ऋद्धि, जुईए - द्युति से, अपने, भवणाओ
भवन से, णिज्जाओ - निकले,
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इस प्रकार की उत्तम, ऋद्धि और द्युति (कान्ति) से सम्पन्न, वृष्णिपुङ्गव
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अह सो तत्थ णिज्जंतो, दिस्स पाणे भयहुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सण्णिरुद्धे सुदुक्खिए ॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - णिज्जंतो निकलते हुए, दिस्स देखकर, पाणे- प्राणियों को, भयहुए भय से त्रस्त, वाडेहिं - बाडों में, पंजरेहिं - पिंजरों में पक्षियों को, सण्णिरुद्धे - रोक कर रखे हुए, सुदुक्खिए - अत्यंत दुःखित ।
भावार्थ - इसके बाद भवन से निकलते हुए और क्रमशः आगे बढ़ते हुए विवाह - मंडप के निकट पहुँचने पर वह अरिष्टनेमि कुमार मृत्यु के भय से भयभीत बने हुए बाड़ों में रोके हुए अतएव दुःखित पशुओं को और पिंजरों में पक्षियों को देख कर विचार करने लगे ।
जीवितं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए ।
पासित्ता से महापणे, सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥
कठिन शब्दार्थ - जीवियंतं - जीवन की अंतिम स्थिति को, संपत्ते - प्राप्त, मंसट्ठा मांस के लिए, भक्खियव्वए - खाये जाने वाले, महापण्णे- महाप्राज्ञ, सारहिं - 'सारथी को, इणं - इस प्रकार, अब्बवी - पूछने लगे ।
१६
BOSSSSSSS
निनाद से,
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