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________________ ४०६ सव्वट्टसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एए, गहा एवमायओ ॥ २१६ ॥ कठिन शब्दार्थ - हेट्ठिमा हेट्ठिमा - अधस्तन-अधस्तन, हेट्ठिमा मज्झिमा अधस्तन मध्यम, हेट्ठिमा उवरिमा - अधस्तन- उपरितन, मज्झिमा मज्झिमा - मध्यम- मध्यम, मज्झिमा - उवरिमा मध्यम उपरितन, उवरिमा हेट्ठिमा उपरितन - अधस्तन, उवरिमा मज्झिमा उपरितन - मध्यम, उवरिमा उवरिमा - उपरितन- उपरितन, गेविज्जा सुरा - ग्रैवेयक देव, विजयाविजय, वेजयंता - वैजयंत, जयंता - जयंत, अपराजिया अपराजित, सव्वट्टसिद्धगा सर्वार्थसिद्ध, अणुत्तरा सुरा - अनुत्तर देव । भावार्थ - नौ ग्रैवेयक देवों की तीन त्रिक ( श्रेणियाँ) हैं - १. ऊपर की २. मध्य की ३. नीचे की । प्रत्येक त्रिक में पुनः ऊपर, मध्य और नीचे, इस प्रकार तीन-तीन भेद हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. अधस्तनाधस्तन (नीचे की त्रिक का नीचे वाला) २. अधस्तनमध्य (नीचे की त्रिक का मध्यम ) ३. अधस्तनउपरितन ( नीचे की त्रिक का ऊपर वाला) ४. मध्यम अधस्तन. (बीच की त्रिक का नीचे वाला) ५. मध्यममध्यमः (बीच की त्रिक का मध्यम ) ६. मध्यम उपरितन (बीच की त्रिक का ऊपर वाला) ७. उपरितन अधस्तन ( ऊपर की त्रिक का नीचे वाला) उपरितन मध्यम (ऊपर की त्रिक का मध्यम) और ६ उपरितन - उपरितन ( ऊपर की त्रिक का ऊपर वाला) इस प्रकार ये ग्रैवेयक देव हैं। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं सुभद्र, सुजात, सुमानस, सुदर्शन, प्रियदर्शन, अमोघ, प्रतिभद्र और यशोधर । लोक का आकार नाचते हुए भोपे (मनुष्य) की आकृति का है। इसमें गर्दन को ग्रीवा कहते हैं। ये नौ विमान घड़े की आकृति में स्थित हैं अथवा एक के ऊपर एक है। मनुष्य की ग्रीवा-गर्दन के स्थान पर आये हुए हैं। इसलिये इनको ग्रैवेयक कहते हैं । ८. - भद्र, - उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन - Jain Education International अनुत्तर वैमानिक देवों के नाम - विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध, ये पाँच प्रकार के अनुत्तर देव हैं। इस प्रकार ये सब वैमानिक देव हैं। इस प्रकार वैमानिक देवों के अनेक भेद हैं। - विवेचन - यहाँ उत्तर शब्द का अर्थ है प्रधान। जिनसे बढ़ कर दूसरा कोई श्रेष्ठ या प्रधान न हों, उसे 'अनुत्तर' कहते हैं। विजय आदि इन पांच विमानों से बढ़ कर किसी देवलोक के विमान नहीं है। देवलोकों में ये पांच सर्वश्रेष्ठ और प्रधान होने से इनको अनुत्तर विमान कहते हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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