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___ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - संतति - प्रवाह की अपेक्षा सभी मनुष्य अनादि और अपर्यवसित - अनन्त भी हैं, स्थिति की अपेक्षा सादि और सपर्यवसित - सान्त भी हैं।
पलिओवमाइं तिण्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई मणुयाणं, अंतोमहत्तं जहणिया॥२०३॥
भावार्थ - मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु स्थिति तीन पल्योपम की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
विवेचन - मनुष्य का तीन पल्योपम का आयुष्य युगलिक मनुष्य की अपेक्षा समझना
चाहिये।
पलिओवमाइं तिण्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया। पुव्वकोडिपुहत्तेणं, अंतोमुहत्तं जहण्णिया॥२०४॥ कायठिई मणुयाणं, अंतरं तेसिमं भवे। अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहण्णयं॥२०५॥
भावार्थ - मनुष्यों की उत्कृष्ट कायस्थिति तीन पल्योपम सहित पृथक्त्व पूर्व-कोटि की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। उनका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल का है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है।
विवेचन - भगवती सूत्र के चौबीसवें शतक में बतलाया गया है कि - कर्मभूमिज मनुष्य, मनुष्य के लगातार आठ भव कर सकता है। यहाँ मनुष्य की उत्कृष्ट कायस्थिति चल रही है इसलिए करोड़ पूर्व-करोड़ पूर्व स्थिति के सात भव कर्मभूमिज मनुष्य के तथा तीन पल्योपम की स्थिति वाला युगलिक मनुष्य का भव करे तो सात करोड़ पूर्व सहित तीन पल्योपम की उत्कृष्ट मनुष्य की कायस्थिति बन सकती है।
एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥२०६॥ .. भावार्थ - वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी इनके सहस्रश - हजारों विधान - भेद होते हैं।
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