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जीवाजीव विभक्ति - संसारी जीवों का स्वरूप
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विवेचन - त्रस नाम कर्म के उदय से चलने फिरने वाले जीव को त्रस कहते हैं। बेइन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव 'स' कहलाते हैं। स्थावर नाम कर्म के उदय से तथा वे स्वयं हलन चलन नहीं कर सकते, उन्हें स्थावर कहते हैं। सभी एकेन्द्रिय जीव स्थावर हैं।
पुढवी आउ-जीवा य, तहेव य वणस्सई। इच्चेए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे॥७०॥
कठिन शब्दार्थ - पुढवी - पृथ्वीकाय, आउ-जीवा - अप्काय के जीव, वणस्सई - वनस्पति के जीव, इच्चेए - इस प्रकार ये, तिविहा - तीन प्रकार के।
भावार्थ - पृथ्वीकाय, अप्काय के जीवों और वनस्पतिकाय इस प्रकार ये तीन प्रकार के स्थावर हैं। अब मुझ से उनके भेदों को सुनो।
विवेचन - यहाँ पर पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय को ही स्थावर बताया है। आगे १०८ वी गाथा में अग्निकाय और वायु काय को त्रस बताया है। वह गति की अपेक्षा त्रस समझना चाहिए। वास्तविक में वे त्रस नहीं हैं, स्थावर हैं। पांचों एकेन्द्रिय जीव स्थावर हैं।
. दुविहा पुढवी जीवा य, सुहुमा बायरा तहा। ... पज्जत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणो॥७१॥
कठिन शब्दार्थ - सुहमा - सूक्ष्म, बायरा - बादर, पज्जत्तमपज्जत्ता - पर्याप्त और
अपर्याप्त।
. भावार्थ - पृथ्वीकाय के जीव दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म और बादर। इसी प्रकार ये पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से पुनः (फिर) दो प्रकार के हैं। ... विवेचन - सूक्ष्म - सूक्ष्म नामकर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर अत्यन्त सूक्ष्म होता है वह छद्यस्थों के इन्द्रिय गोचर (पांचों इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय से ग्राह्य) नहीं होता है। उसका आयुष्य अन्तर्मुहूर्त का होता है। किसी के मारने से मरता नहीं है किन्तु आयुष्य समाप्त होने पर स्वयं मृत्यु को प्राप्त होता है। पांचों स्थावर में सूक्ष्म जीव भी होते हैं। सूक्ष्म जीव सारे लोक में भरे पड़े हैं।
बादर - बादर नामकर्म के उदय से बादर अर्थात् स्थूल शरीर वाले जीव बादर कहलाते हैं। पांच स्थावर बादर भी होते हैं।
पर्याप्तक - आहारादि के लिए पुद्गलों को ग्रहण करने तथा उन्हें आहार, शरीर आदि रूप परिणमाने की आत्मा की शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते हैं। यह शक्ति पुद्गलों के उपचय
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