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________________ जीवाजीव विभक्ति - रूपी अजीव का निरूपण ३५५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भावार्थ - स्पर्श की अपेक्षा जो पुद्गल रूक्ष स्पर्श वाला है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, रस से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए, इस प्रकार स्पर्श के कुल १३६ भेद होते हैं। विवेचन - यहाँ पर स्पर्श के १३६ भेद ही दिये हैं किन्तु आठ स्पर्श में से दो स्पर्श ही विरोधी होते हैं। इस अपेक्षा से एक स्पर्श के २३ भेद लेना चाहिये। वैसा लेने से स्पर्श के २३४८-१८४ भेद होते हैं। परिमंडल-संठाणे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥४३॥ भावार्थ - परिमंडल संस्थान वाले पुद्गल स्कन्ध में वर्ण से, गन्ध से, रस से और स्पर्श से भी भजना समझनी चाहिए अर्थात् पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श, इन बीस बोलों की भजना होती है। संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥४४॥ भावार्थ - संस्थान की अपेक्षा जो पुद्गल वृत्ताकार (गोलाकार) होता है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, रस से और स्पर्श से भी भजना समझनी चाहिए। संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥४५॥ भावार्थ - संस्थान की अपेक्षा जो पुद्गल त्र्यम्र (त्रिकोण) होता है, उसकी वर्ण से, गंध से, रस से और स्पर्श से भी भजना समझनी चाहिए। संठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥४६॥ भावार्थ - संस्थान की अपेक्षा जो पुद्गल चतुरस्र (चतुष्कोण) होता है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, रस से और स्पर्श से भी भजना समझनी चाहिए। जे आययसंठाणे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥४७॥ भावार्थ - जो पुद्गल-स्कन्ध आयत संस्थान वाला है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, रस से और स्पर्श से भी भजना समझनी चाहिए। ना समझना चाहिए। . .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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